क्या जिंदगी मे एक बार कुरआन का तर्जुमा पढ़ना जरुरी है
अस्सालामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु
क्या फरमातें है उलमाए एकराम व मुफ्तियान ए एजा़म मसअला के बारे में कि क्या इंसान को कुरआन मज़ीद का तर्जुमा जिंदगी मे एक बार पढ़ना जरुरी है बहवाला जवाब इनायत फरमाएं मेहरबानी होगी आपकी फक्त वस्सालाम
साइल> अब्दुल्ला
व अलैकुम अस्सालाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु
अल जवाब अल्ला हुम्मा हिदायतु अलहक़ बिस्सावाब
जिंदगी मे कुरआन का तर्जुमा पढ़ना जरुरी नही है बल्कि बेहतर है और पढ़ना भी चाहिए क्योंकि सिर्फ अरबी इबारत पढ़ कर इंसान कुरआन के माना व मफहूम से ना वाकिफ़ रहता है अलबत्ता कुरआन के एक आयत का हिफ्ज़ करना हर मुसलमान मुक्ल्लिफ पर (जरुरी) फर्ज़ ऐैन है
जैसा कि बहार ए शरीअत मे ब हवाला दर् अल मुख्तार है कि एक आयत का हर मुसलमान मुक्ल्लिफ पर फर्ज़ ऐैन है और पूरे कुरआन मज़ीद का हिफ्ज़ करना फर्ज़ कफाया और सूरह फातिहा और एक दूसरी छोटी सूरत या उसके मिस्ल मस्लन तीन छोटी आयतें या एक बड़ी आयत का हिफ्ज़ वाज़िब ऐैन है।
(ब हवाला बहार ए शरीअत हिस्सा 03 कुरआन मज़ीद पढ़ने का बयान मसअला नः 13)
वल्लाहो आलमु बिस्सवाब
कत्बा हज़रत अल्लामा व मौलाना मोहम्मद मासूम रजा़ नूरी साहब किब्ला
हिंदी ट्रांसलेट मोहम्मद शफीक़ रजा़