सजदा ए तिलावत का बयान



 सजदा ए तिलावत का बयान

मसअ्ला

नमाज़ पढ़ने वाला सजदा -ए- तिलावत भूल गया तो रुकूअ़ या सजदा या क़ा'दा में याद आया तो उसी वक़्त कर ले फिर जिस रुक्न में था उस की तरफ लौट आये यानी रुकूअ़ में था तो सजदा कर के रुकूअ़ में वापस हो और अगर उस रुक्न को ना दोहराया जब भी नमाज़ हो गयी मगर आखिरी क़ा'दे को दोहराना फ़र्ज़ है कि सजदा से क़ा'दा बातिल हो जाता है

मसअ्ला

एक मजलिस में सजदे की एक आयत को बार बार पढ़ा या सुना तो एक सजदा ही वाजिब होगा, अगर्चे चंद शख़्सों से सुना हो

मसअ्ला

 यूँ ही अगर आयत पढ़ी और वही आयत दूसरे से सुनी भी जब भी एक ही सजदा वाजिब होगा

मसअ्ला

पढ़ने वाले ने कई मजलिसों में एक आयत बार-बार पढ़ी और सुनने वाले की मजलिस ना बदली तो पढ़ने वाला जितनी मजलिसों में पढ़ेगा उस पर उतने ही सजदे वाजिब होंगे और सुनने वाले पर एक 

मसअ्ला

और अगर इसका अक्स है यानी पढ़ने वाला एक मजलिस में बार बार पढ़ता रहा और सुनने वाले की मजलिस बदलती रही तो पढ़ने वाले पर एक सजदा वाजिब होगा और सुनने वाले पर उतने कि जितनी मजलिसों में सुना

(बहारे शरीअत वगैरह)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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