☆ बच्चों की अख्लाकी तरबियत ☆
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एक आदमी ने हातिम ताई से पूछा कि आपने अपने आपसे ज्यादा कभी किसी को बुलन्द हिम्मत और बहादुर देखा है ? हातिम ने जवाब दिया. हाँ देखा है
अमर वाकेआ यह है कि एक दिन मैंने चालिस ऊँट ज़िबह किये थे और तमाम अहले इलाका की दावत की थी. ऐन खाने के वक्त मैं किसी काम से जंगल की तरफ निकल गया. वहाँ एक लकड़हारे को देखा कि मेहनत व मुशक्कत के साथ लकड़ियाँ काटने में मशगूल है. मैंने उससे कहा
ऐ लकड़हारे तू इस वक्त यहाँ धूप में क्यों परेशान हो रहा है ? जा हातिम ताई के यहाँ आज दावते आम है. मजे लेले कर खा पी. यह सुन कर उसने जवाब दियाः जो लोग अपने हाथ से कमाई करना और मेहनत करके अपना पेट भरना जानते हैं वह हातिम का एहसान लेने की ज़रूरत ख्याल नहीं करते
प्यारे बच्चो हमारे आका सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हमें कितनी अच्छी नसीहत फरमाइ है
वह कमाई सबसे बेहतर है जो इनसान खुद मेहनत करके कमाता है
📗 (कंजुल उम्मालः 4/9 हदीसः 9224)
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कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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