मज़लूम की बद्दुआ
एक अमीर आदमी गरीब लकड़हारों से बहुत ही कम दामों पर लकड़ियाँ खरीद लिया करता था और उनहें महंगे दामों रईसों के हाथों फरोख्त किया करता था
एक फकीर ने उस आदमी को इस जुल्म से मना किया कि यह बात ठीक नहीं है कहीं इससे तुम्हें कोई भारी नुक्सान न उठाना पड़ जाए मगर उस आदमी ने फकीर की एक न सुनी और अपना काम करता रहा
फिर एक दिन खुदा का करना ऐसा हुआ कि उस आदमी के घर में यका यक आग लग गई सब हैरान थे कि आग लगी कैसे ?
उसी वक्त उस फकीर का वहाँ से गुज़र हुआ और उसने कहाः मैं बताता हूँ कि आग कैसे लगी
लोगों ने पूछा कि बताओ तो उसने जवाब दिया
गरीबों की आह और मजलूमों की बद्दुआ से
प्यारे बच्चो कभी किसी की मजबूरी से नाजाएज फाएदा नहीं उठाना चाहिये देखो कि अगर उस अमीर आदमी को हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम की यह हदीस याद होती तो शायद ऐसी हरकत कभी न करता
मजलूम की बद्दुआ से बचो क्योंकि उसकी आह का अल्लाह की बारगाह से बराहे रास्त (डाएरेक्ट) तअल्लुक है उसके बीच कोई चीज हाएल नहीं
📗 (सही बुखारी 8/321 हदीस -2268)
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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