ग़ुस्ल और जदीद साइंस
सफाई और पाकीज़गी के लिए दुनिया की कोई चीज़ पानी के मानिन्द सहलुल हुसूल ज़ोद असर और बे ज़रर नहीं है यह ताहिर व मुतह्हिर यानी ख़ुद पाक और दुसरी चीज़ों को पाक करने वाली अल्लाह तआला की पैदा करदह नेअमत है
बीबी से सोहबत के बाद या किसी और वुजूहात की बिना पर हिफज़ाने सेहत के पैहलू से इसकी इफादियत मुसल्लम है
इस से तबीयत में चुस्ती और निशात पैदा होता है और जिमाअ के नतीजे में जिस्म की जो क़ुव्वत ज़ाइल ( ख़त्म ) हो जाती है उसकी बहाली का सामान करता है बाज़ ख़तरनाक बीमारियों से बचाओ का भी यह एक फितरी तरीक़ा है बड़े बड़े हुक्मा ने उसकी सराहत की है जिस तरह फेफड़े और गुरदे वग़ैरह फुज़लाते रदिय्या को ख़ारिज करते रहते हैं उसकी खाल का बाहरी हिस्सा भी बज़रिया मुसामात ( सुराख़ )
फुज़लात को ख़ारिज ( निकालना )
करती रहती है नहाने से सिर्फ बदन ही साफ नहीं होता बल्कि मसाम ( सुराख़ )
खुलकर ख़राब माद्दे और ख़ून के नाक़िस बुख़ारात ख़ारिज हो जाते हैं जिस्म के आज़ाओ की अन्दरूनी बनावट दुरुस्त रहती है खाल के बाहरी हिस्से हर एक मुरब्बअ इंच में तीन सौ के क़रीब मसामात ( सुराख़ )
होते हैं जिनके रास्ते से अन्दर ख़राब बुख़ार हर वक़्त निकलता रहता है और बाहर की साफ हवा अन्दर खींच कर जाती है अन्दरूनी बुख़ार के साथ एक क़िस्म का तेल भी है जो तेज़ाबी ख़ासियत रखता है वो ख़ून से जुदा होकर ख़ारिज ( निकलना )
होता रहता है यही चिकनाई जो मैल की सूरत में जिस्म और कपड़ों पर लग कर उन्हें ख़राब कर देती है अगर इसे दूर ना किया जाए तो बदन से बदबू आने लगती है अब आप फ़ौरन समझ सकते हैं कि ऐसी चीज़ जिसका बाहर निकलना बड़ा ज़रूरी है अगर रुक जाए तो कैसी ख़राबी पैदा होगी जब कुछ मुद्दत ग़ुस्ल ना करने से मसाम ( सुराख़ ) बन्द हो जाते हैं तो हवा की काफी मिक़दार अन्दरूनी आज़ाओं की हरकत के लिए जो ज़रूरी है नहीं पहुँचती तो पसीने और चिकनाई के साथ जो खारी माद्दा निकलता है वो रुक कर दोबारा ख़ून में शामिल हो कर ख़ून में शोरियत पैदा करके उसे खट्टा कर देता है जिसके नतीजे में ख़ारिश फोड़े फुनसी वजउल मफासिल गठिया वग़ैरह मर्ज़ हो जाते हैं इस लिए ज़रूरी है कि रोज़ाना ग़ुस्ल करके खाल को साफ रखा जाए
ग़ुस्ल हसबे आदत मोसम के लिहाज़ से गरम या सर्द पानी से करना चाहिए ग़ुस्ल करने के बाद बदन को उमदा कपड़े से ख़ुश्क कर लेना चाहिए ताकि खाल अच्छी तरह साफ हो सुराख़ खुल जाएँ ग़ुस्ल के लिए सबसे अच्छा वक़्त सुबह का है या फिर शाम को खाने से पहले का है अगर ऐसा न हो सके तो फिर जो वक़्त मुक़र्रर कर लिया जाए बेहतर है लेकिन खाना खाने के बाद ग़ुस्ल करना सेहत के लिए नुक़सान दह है क्योंकि जिल्दी उरूक़ फैल कर मेदे का दोरान ख़ून सुस्त हो जाता है और हाज़मे में ख़राबी पैदा हो जाने का अन्देशा है 📘 इबादत और जदीद साइंस सफह नम्बर 27)
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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