कहां गलती मुफ़सिदे नमाज़ है और कहां नहीं इस का मालूम पड़ना और वोह भी नमाज़ की हालत में हर एक का काम नहीं जैसा कि इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत, शाह इमाम अहमद रज़ा खान फ़तावा रज़विय्या शरीफ़ में फ़रमाते हैं गलती का मुफ़सिदे मा ना होना (यानी गलती ऐसी हो जिस से माना फ़ासिद हो जाएं) मनाए इफ़्सादे नमाज़ (नमाज़ के फ़साद की वजह) है, ऐसी चीज़ नहीं जिसे सहल (आसानी से) जान लिया जाए हिन्दूस्तान में जो उ-लमा गिने जाते हैं उन में चन्द ही ऐसे हो सकें कि नमाज़ पढ़ते में इस पर मुत्तलअ हो जाएं हज़ार जगह होगा कि वोह इफ़्साद गुमान करेंगे और हक़ीक़तन फ़साद न होगा जैसा कि हमारे फ़तावा की मुराजअत (यानी फ़तावा के पढ़ने) से ज़ाहिर होता है
(फ़तावा रिज़विय्या शरीफ़ स. 287 जि. 07 रज़ा फाउन्डेशन लाहोर)
लिहाज़ा जहां फ़सादे माना का शुबा हो वहां अपने तौर पर कोई फैसला करने के बजाए जय्यिद उलमा से रुजूअ किया जाए
📚 नमाज़ में लुक़्मा देने के मसाइल स.26 27
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
एक टिप्पणी भेजें