जवाब दूसरी शर्त ये है के बादशाह या उसका नाइब जुमा क़ायम करे और अगर इस्लामी हुकूमत न हो तो सबसे बड़ा सुन्नी सहीहुल अक़ीदा आलिम क़ायम करे,कि बग़ैर उसकी इजाज़त के जुमा नहीं क़ायम हो सकता और अगर ये भी न हो तो आम लोग जिसको इमाम बनाएं वो क़ायम करे 📚 फ़तावा रज़वियह
सवाल जुमा जाइज़ होने की तीसरी और चौथी शर्त क्या है
जवाब तीसरी शर्त ज़ोहर के वक़्त का होना है लिहाज़ा वक़्त से पहले या बाद में पढ़ी ना हुई या दरम्यान नमाज़ में असर का वक़्त आ गया जुमा बातिल हो गया ज़ोहर की क़ज़ा पढ़ें, और चौथी शर्त ये है,कि ज़ोहर के वक़्त में नमाज़ से पहले ख़ुत्बा हो जाए
सवाल जुमा के ख़ुत्बे में कितनी बातें सुन्नत हैं
जवाब उन्नीस बातें सुन्नत हैं
ख़तीब का पाक होना
खड़े हो कर ख़ुत्बा पढ़ना
ख़ुत्बा से पहले ख़तीब का बैठना
ख़तीब का मिम्बर पर होना और सामेईन की तरफ़ मुंह और क़िब्ला की तरफ़ पीठ होना
हाज़िरीन का ख़तीब की तरफ़ मुतवज्जह होना
ख़ुत्बा से पहले आऊज़ूबिल्लाह आहिस्ता पढ़ना
इतनी बुलंद आवाज़ से ख़ुत्बा पढ़ना के लोग सुनें
लफ़्जे अलहम्दू से शुरू करना
अल्लाह तआला की सना करना
अल्लाह तआला की वहदानियत और हुज़ूर अलैहिस्सलातू वस्सलाम की रिसालत की गवाही देना
हुज़ूर पर दुरूद भेजना
कम से कम एक आयत की तिलावत करना
पहले ख़ुत्बा में वअज़ व नसीहत होना
दूसरे में हम्द व सना
शहादत और दुरूद का इआदा करना
दूसरे मुसलमानों के लिए दुआ करना
दोनों ख़ुत्बों का हल्का होना और दोनों ख़ुत्बों के दरम्यान तीन आयत की मिक़्दार बैठना 📚 आलम गीरी 📚 दुर्रेमुख़्तार 📚 ग़ुनियातुत्तालिबीन 📚 बहारे शरीअत
सवाल उर्दू में ख़ुत्बा पढ़ना कैसा है
जवाब अरबी के अलावा किसी दूसरी ज़बान में पूरा ख़ुत्बा पढ़ना या अरबी के साथ किसी दूसरी ज़बान को मिलाना दोनों बातें सुन्नते मुतवारिसा के ख़िलाफ़ और मकरूह हैं 📚 फ़तावा रज़वियह
सवाल ख़ुत्बा की अज़ान इमाम के सामने मस्जिद के अंदर पढ़ना सुन्नत है या बाहर
जवाब ख़ुत्बा की अज़ान इमाम के सामने मस्जिद के बाहर पढ़ना सुन्नत है कि हुज़ूर अलैहिस्सलातू वस्सलाम और सहाबा ए किराम के ज़माने में ख़तीब के सामने मस्जिद के दरवाज़ा ही पर हुआ करती थी जैसा के हदीस शरीफ़ की मशहूर किताब
📚 अबू दाऊद, जिल्द 1 सफ़ह 162, में है
तर्जमा हज़रते साइब बिन यज़ीद रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है उन्होंने फ़रमाया के जब रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम जुमा के रोज़ मिम्बर पर तशरीफ़ रखते तो हुज़ूर के सामने मस्जिद के दरवाज़े पर अज़ान होती और ऐसा ही हज़रत अबू बकर व उमर रज़ीअल्लाहू तआला अन्हुमा के ज़माना में होता था इसीलिए
📚फ़तावा क़ाज़ी ख़ां 📚 फ़तावा आलम गीरी 📚 बहरुर्राइक़ और📚 फ़तहुल क़दीर वग़ैरह में मस्जिद के अंदर अज़ान देने को मना फ़रमाया और 📚 तहतावी अला मिराक़ीउल फ़लाह, ने मकरूह लिखा
सवाल जुमा जाइज़ होने की पांचवीं और छटी शर्त क्या है
जवाब पांचवीं शर्त जमाअत का होना है जिसके लिए इमाम के अलावा कम अज़ कम तीन मर्द का होना ज़रूरी है और छटी शर्त इज़्ने आम है इसका मतलब ये है कि मस्जिद का दरवाज़ा खोल दिया जाए ताके जिस मुसलमान का जी चाहे आए किसी की रोक टोक न हो 📚 आलम गीरी 📚 फ़तावा रज़वियह 📚 बहारे शरीअत📗 अनवारे शरीअत, उर्दू, सफ़ह 89/90/91)
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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