नमाज़े तहयतुल वुज़ू की फ़ज़ीलत👇
📚 मुस्लिम शरीफ़ में है के नबी ए करीम अलैहिस्सलातू व तस्लीम ने फ़रमाया
जो शख़्स वुज़ू करे और अच्छा वुज़ू करे और ज़ाहिर व बातिन से मुतवज्जह होकर दो (2) रकअत नमाज़े तहयतुल वुज़ू पढ़े उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है 📚 मुस्लिम शरीफ़)
नमाजे इशराक़ की फ़ज़ीलत👇
📚 तिर्मिज़ी शरीफ़, में है के हुज़ूर ए अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के
जो फ़ज्र नमाज़ जमाअत से पढ़कर ख़ुदा का ज़िक्र करता रहे यहां तक के सूरज बुलंद हो जाए फिर दो (2) रकअत नमाज़े इशराक़ पढ़े तो उसे पूरे हज और उमरा का सवाब मिलेगा,
📚 तिर्मिज़ी शरीफ़)
नमाज़े चाश्त की फ़ज़ीलत👇
चाश्त की नमाज़ मुस्तहब है कम से कम दो (2) और ज़्यादा से ज़्यादा बारह (12) रकअतें हैं
📚 तिर्मिज़ी शरीफ़ और इब्ने माजा में है के हुज़ूर सैयद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
जो चाश्त की दो (2) रकअतों की मुहाफ़िज़त करे उसके गुनाह बख़्श दिए जाएंगे अगरचे समंदर के झाग बराबर हों,
📚 तिर्मिज़ी शरीफ़📚 इब्ने माजा)
नमाज़े तहज्जुद की फ़ज़ीलत👇
तहज्जुद की नमाज़ का वक़्त इशा की नमाज़ के बाद सोकर उठे उस वक़्त से तुलू ए सुबह सादिक़ तक है
तहज्जुद की नमाज़ कम से कम दो (2) रकअत है और हुज़ूर सैयद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम से आठ (8) रकअत तक साबित है
हदीस शरीफ़ में इस नमाज़ की बड़ी फ़ज़ीलत आई है
📚 निसाई और
📚 इब्ने माजा ने अपनी सुनन में रिवायत की के रसूल ए करीम अलैहिस्सलातू व तस्लीम ने फ़रमाया
जो शख़्स रात में बेदार हो और अपने अहल को जगाए फिर दोनों दो (2) दो (2) रकअत पढ़ें तो कसरत से याद करने वालों में लिखे जाएंगे
📚 निसाई शरीफ़📚 इब्ने माजा)
नमाज़े सलातुत तस्बीह की फ़ज़ीलत👇
सलातुत तस्बीह में बे इन्तहा सवाब है
बअज़ मुहक़्क़िक़ीन फ़रमाते हैं के
इसकी बुज़ुर्गी सुनकर तर्क ना करेगा मगर दीन में सुस्ती करने वाला (यानी जो शख़्स दीन में सुस्ती करता है वोही इस नमाज़ को तर्क करेगा यानी छोड़ेगा)
हदीस शरीफ़ में है के👇
हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत अब्बास रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह से फ़रमाया के
ऐ चचा अगर तुम से हो सके तो *सलातुत तस्बीह* हर रोज़ एक बार पढ़ो और अगर रोज़ न हो सके तो हर जुमा को एक बार पढ़ो और अगर ये भी न हो सके तो हर महीने में एक बार और ये भी न हो सके तो साल में एक बार और ये भी न हो सके तो उम्र में एक बार,
इस नमाज़ की तरकीब
📚 सुनने तिर्मिज़ी शरीफ़ में हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक से इस तरह मज़कूर है के
तक्बीरे तहरीमा के बाद सना (यानी सुब्हाना कल्लाहुम्मा, पूरी) पढ़े फिर पंद्रह (15) बार ये तस्बीह पढ़े
सुब्हान अल्लाही वल हम्दू लिल्लाही व लाइलाहा इल्लल्लाहू वल्लाहू अकबर
फिर तअव्वुज़ यानी अऊज़ूबिल्लाही मिनश्शैतानिर्रजीम और तस्मियां यानी बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम सूरह ए फातिहा और सूरत पढ़ कर दस (10) बार ऊपर वाली तस्बीह पढ़े फिर रुकू करे और रुकू में दस (10) बार पढ़े फिर रुकू से सर उठाए और तस्मी यानी समीअल्लाहुलीमन हमिदह व तम्हीद यानी रब्बना लकल हम्द के बाद दस (10) बार वही तस्बीह पढ़े फिर सजदा को जाए और उसमें दस (10) मर्तबा पढ़े फिर सजदा से सर उठाए तो दस (10) बार पढ़े, फिर दूसरे सजदा में जाए तो दस (10) बार पढ़े, इसी तरह चार (4) रकअत पढ़े और रुकू व सुजूद में सुब्हाना रब्बीयल अज़ीम और सुब्हाना रब्बीयल आला कहने के बाद तस्बीहात पढ़े
📚सुनने तिर्मिज़ी शरीफ़)
नमाज़े हाजत की फ़ज़ीलत👇
📚अबु दाऊद में है के हज़रत हुज़ैफ़ा रज़ीअल्लाहू तआला अन्ह फ़रमाते हैं के
जब हुज़ूर सैयद ए आलम सल्लल्लाहू तआला अलैहि वसल्लम को कोई मुआमला पेश आता तो आप उसके लिए दो (2) या चार (4) रकअत नमाज़ पढ़ते
हदीस शरीफ़ में है के
पहली रकअत में सूरह ए फ़ातिहा और तीन (3) बार आयतल कुर्सी पढ़े, और बाक़ी तीन (3) रकअतों में सूरह ए फ़ातिहा, क़ुलहूवल्लाहू, क़ुलअऊज़ू बिरब्बिल फ़लक़ और क़ुलअऊज़ू बिरब्बिन्नास, एक एक बार पढ़े तो ये ऐसी हैं जैसे शबे क़द़्र में चार (4) रकअतें पढ़ीं
मशाइख़ फ़रमाते हैं के हमने ये नमाज़ पढ़ी और हमारी हाजतें (ज़रूरतें) पूरी हुईं 📚 अबू दाऊद)
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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