सवाल टी वी देखना कैसा है कुछ लोग कहते हैं कि दीनी मालूमात के लिए मदनी चैनल देखना जाइज़ है और अपनी जवान लड़कियों और घरवालों को मदनी चैनल दिखाते हैं तो क्या हुक्म है
अल जवाब टीवी देखना ना जाइज़ व हराम और गुनाहे अज़ीम है, ख्वाह वह मक्की मदनी चैनल ही क्यों ना हो, क्योंकि बक्स और स्क्रीन पर जो इंसानी तस्वीर नज़र आती है वह तस्वीर के हुक्म में है और बिलक़स्द (जानबूझकर अपनी खुशी से) तस्वीर देखना दिखाना अगरचे किसी वली अल्लाह ही कि क्यों ना हो इसी तरह नाजाइज़ व हराम है, जिस तरह ज़ीरूह की तस्वीर बनवाना बनाना और ऐज़ाज़न (ताज़ीम के साथ) अपने पास रखना हराम है
हदीसे पाक में है
बेशक निहायत सख़्त अज़ाब रोज़े क़यामत उन तस्वीर बनाने वालों पर होगा, जो ख़ुदा ए तआला के बनाए हुए की नक़ल करते हैं
📚 मुस्लिम शरीफ़, जिल्द 2, सफ़ह 200)
और आला हज़रत अलैहिर्रहमतू वर्रिज़वान फ़रमाते हैं
हुजूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने ज़ीरूह की तस्वीर बनाना बनवाना ऐज़ाज़न अपने पास रखना सब हराम फ़रमाया और उस पर सख़्त वईदें इरशाद कीं और उनके दूर करने और मिटाने का हुक्म दिया
अहदीस इस बारे में हद्दे तवातुर पर हैं
फिर चंद सतरों के बाद तहरीर फ़रमाते हैं
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम फ़रमाते हैं
हर मुसव्विर (तस्वीर बनाने वाला) जहन्नम में है अल्लाह तआला हर तस्वीर के बदले जो उसने बनाई थी एक मख़लूक़ पैदा करेगा कि वह जहन्नम में उसे अज़ाब करेगी
📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 143 निस्फ़ अव्वल)
और हुज़ूर शारहे बुखारी मुफ़्ती मुहम्मद शरीफ़ुल हक़ अमजदी क़ुद्देसा सिर्रहुल अज़ीज़ तहरीर फ़रमाते हैं
घर में टीवी रखना हराम और उसे देखना दिखाना सब हराम के बक्स पर जो इंसानी तस्वीर नज़र आती है तस्वीर है और बिल्क़स्द तस्वीर को देखना भी हराम अगरचे किसी अल्लाह के वली की हो, उससे हटकर टीवी में मुख़रबुल अख़्लाक़ सीन भी दिखाए जाते हैं, मसलन औरतों का गाना, नाचना, थिरकना बल्के फिल्मी सीन में बोस व किनार (चुम्मा चाटी) तक होता है,
उन मनाज़िर का बच्चों के अख़्लाक़ पर क्या असर पड़ेगा और यह कितनी बड़ी बे हयाई है, कि मां व बाप बच्चों के साथ बैठकर यह सब देखें टीवी और फिल्म दोनों का ख़रीदना ही ना जाइज़ है कि ख़रीदने में एआनत अलल असम है और देखना भी हराम है
तस्वीर का देखना हराम जो लोग उसे जाइज़ कहते हैं उन्हें समझाया जाए मान जाएं फ़बिहा वरना उनको उनके हाल पर छोड़ दिया जाए (और उनसे दूर रहा जाए) इस जमाने में इससे ज़्यादा और क्या किया जा सकता है
📙 माहनामा अशरफ़ियह शुमारह दिसंबर 1994.ई)
शरीअत या तबीअत
लेकिन अब कुछ ऐसे मौलवी और मुफ़्ती पैदा हो गए हैं, जो चंद दुनियावी सिक्कों के एवज़ अपने फ़तावओं को बेच रहे हैं और अपनी तबीयत के इख़तिरा से जिसको चाहते हैं
जाइज़ और जिसे चाहते हैं नाजाज़ ठहरा देते हैं, चाहे वह फ़तवा व मसलके आलाहज़रत यानी शरअ् के मुताबिक़ हो या ना हो और दलील में बहुत से हुज़ूर मदनी मियां का क़ौल पेश करते हैं कि उन्होंने टीवी को जाइज़ फ़रमाया है,
इसलिए टीवी देखना जाइज़ है,, यह उनकी सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी है किसी शख़्स वाहिद (एक आदमी) की अपनी तहक़ीक़ और नज़रिया को दलील बना कर नाजाइज़ को जाइज़ क़रार देना कहां का इंसाफ है, उस वक़्त भी बहुत से जलीलुल क़दर उल्मा व फ़ुक़्हा ने टीवी देखने को नाजाइज़ ही फ़रमाया था
लेकिन उन दुनियावी हरीसों को उन मुअतमद व मुक़तदर उल्मा ए किराम का फ़तवा नज़र ना आया, हक़ीक़त तो यह है कि इस तरह के लोग महज़ अपनी मफ़ाद (फ़ायदा) की खातिर जो चाहते हैं करते हैं, उन्हें शरीयत से कोई ग़र्ज नहीं, वरना इस तरह की जसारत ना करते,
मैं आपको बता दूं आज से कई साल पहले जिस वक़्त टीवी के जवाज़ और अदम जवाज़ (जाइज़ और ना जाइज़) का मसला उठा था उस वक़्त सिर्फ़ चंद गिने-चुने अफ़राद के अलावा बहुत से उल्मा व फ़ुक़्हा ए किराम की अक्सरीयत टीवी के अदम जवाज़ पर थी (यानी ज़्यादा तर उल्मा इस बात पर रज़ी थे कि टीवी नाजाइज़ है) उस वक़्त अमीरे दावते इस्लामी मौलाना इलियास अत्तार क़ादरी साहब और उनके मद्दहान व हामियान और मुबल्लिग़ीन हज़रात ने सैकड़ों ख़्वाब देखे, जिसमें उन्हें यह इलहाम किया गया था के लोगों को बताओ कि टीवी बहुत बुरी शय है, उससे घर की बरकतें उठ जाती हैं, और घर का घर तबाह व बर्बाद हो जाता है, टीवी देखना हराम व नाजाइज़ और बड़ा गुनाह है वगैरा-वगैराऔर उसी वक़्त कई रिसाले (किताबें) भी तैयार कर दिए जिसमें मनघड़त ख़्वाब और क़िस्से व कहानी दर्ज किए रिसालों में कोई टीवी और अजाबे क़ब्र और कोई टीवी और उसकी तबाहकारियां वगैरा-वगैरा नामों से शाया हुईं (छपी) और मुंबई में कारखानों बड़ी-बड़ी कंपनियों और ऑफिसों से और घरों से टीवी को बाहर फिकवाया और यह कह कह कर सड़कों और गलियों में टीवी को फ़ुड़वाया कि यह शैतान है, यह शैतान है, इससे घरों को पाक करो, लेकिन ऐसा लगता है कि मौलाना इलियास साहब उस वक़्त यह चाहते थे कि टीवी अगर जायज़ हो जाती तो अपना काम बन जाता, लेकिन जब देखा के उल्मा की अक्सरीयत अदम जवाज़ पर है (यानी सब उल्मा नाजाइज़ मान रहे हैं) सिर्फ़ एक या चंद अफ़राद के जवाज़ का क़ौल करने पर काम ना बनेगा तो सोचा चलो अभी ना सही कुछ देर बाद ही सही लेकिन जो भी मौक़ा मिल रहा है उसे हाथ से ना जाने दो और टीवी के नाजाइज़ होने और उसकी तबाहकारी पर इतने ख़्वाब देखो के गली गली सिर्फ़ ख़्वाब की किताबें ही नज़र आएं
कुछ लोगों ने कहा कि टीवी पर अच्छी-अच्छी बातें भी आती हैं, दीन के बारे में जानकारी भी मिलती है लिहाज़ा जायज़ होना चाहिए क्योंकि अब ज़रूरत है तो मौलाना इलियास अत्तार साहब क़यामत का इंतिहान नामी किताब के सफ़ह 14 पर इसका जवाब देते हुए तहरीर फ़रमाते हैं
बाज़ लोग कहते हैं टीवी के चैनलों पर अच्छी-अच्छी बातें भी आती हैं, आती होंगी मगर मुझे कहने दीजिए कि इस टीवी के गुनाहों भरे और गैर जिम्मेदार चैनलों ने दर हक़ीक़त खौफ़नाक तूफ़ान बद्तमीज़ी खड़ा कर दिया है और इस्लामी मुआशरे को तबाही के गहरे गढ़े में झोंक दिया है यानी मौलाना इलियास अत्तार क़ादरी साहब यह कहना चाहते हैं कि अगरचे टीवी से अच्छी अच्छी बातें मालूम हों और दावते तबलीग़ हो और दीन का काम हो तब भी यानी किसी सूरत में भी टीवी देखना जाइज़ नहीं
यह सब कुछ हो जाने के बाद फिर वक़्त गुजरता गया यहां तक के अब जब्के दौर ऐसा आ गया कि अपनी मफ़ाद (फ़ायदा) और पैसों के एवज़ नाम निहाद मौलवी मुफ़्ती फ़तवा देने लगे तो अमीरे दावते इस्लामी और उनके मुबल्लिग़ीन ने अपने इस इरादा ए क़दीम (पुराने इरादे) को उजागर किया जो बरसों से दिल में छुपाए हुए थे और ख़्वाब देखने का सिलसिला फिर से चालू हो गया लेकिन अब टीवी के अदम जवाज़ (नाजाइज़ होना) पर नहीं बल्कि जवाज़ (जाइज़ होना) पर और मौलाना इलियास अत्तार साहब ने टीवी देखने को जायज़ क़रार दे दिया के मीठे मीठे इस्लामी भाइयो मदनी चैनल देखते रहो और उस पर दलील कहीं या बहाना यह के उस से दावत व तबलीग़ हो रही है दीन का काम हो रहा है अब उसकी ज़रूरत है, कारिईने किराम ज़रा गौर कीजिए कि बेएनीह इसी अंदाज के एक सवाल के जवाब में कह रहे हैं कि टीवी देखना किसी सूरत में दुरुस्त ही नहीं अब जबके अपनी बारी आई यानी अपने को मारूफ़ व मशहूर करना चाहा अपने मतलब व मफ़ाद की बात आई पूरी दुनिया के सामने अपने आप को पेश करना चाहा कि हम ही सबसे बड़े मुत्तक़ी परहेज़गार मुबल्लिग़ मुसलेह बल्के सबसे बड़े वली और बुज़ुर्ग हम ही हैं तो अब टीवी पर मदनी चैनल देखना जाइज़ ही नहीं बल्कि मुस्तहब व सवाब भी क़रार दे दिया और मफ़ाद परस्त मौलवियों से फ़तवा लिया तो उन्होंने जाइज़ भी क़रार दे दिया
हुज़ूर शारहे बुख़ारी मुफ़्ती शरीफ़ुल हक़ साहब का एक मज़मून टीवी के मसअले पर माहनामा अशरफ़ियह शुमारह दिसंबर 1994 में शाय हुआ जिसमें आपने टीवी रखना खरीदना देखना दिखाना सब हराम क़रार दिया लेकिन अफ़सोस कि कुछ ना निहाद मुफ़्ती और मौलवी अब ऐसे भी हुए जो ना यह के टीवी के जवाज़ के क़ायलीन का भरपूर तआवुन नुसरत व हिमायत करते हैं बल्के ख़ुद चंद दुनियावी सिक्कों के एवज़ शरीअत और तबीयत का सौदा करके टीवी को जायज़ भी ठहराते हैं और तमाम क़ायलीने जवाज़ उसको मदनी चैनल के नाम से मौसूम करते हैं मजीद उस पर यह क़ौल के अब यह ज़रूरत है और इससे दावत व तब्लीग़ और दीन का काम हो रहा है, अल्लाह की पनाह इस क़दर धोका बर धोका कि आज शैतान भी मसरूर है
मैं यह कह रहा हूं कि जिन लोगों ने मौलाना इलियास साहब के फ़तवे की ताईद की है उन लोगों ने यह क्यों नहीं पूछा कि आप जिन वुजूहात की बिना पर टीवी को जायज़ कह रहे हैं उसी अंदाज का एक सवाल उन्हीं वुजूहात की बिना पर आप से किया गया के टीवी जाइज़ होना चाहिए क्योंकि इससे अच्छी अच्छी बातें मालूम होती हैं,
तो आपने क्यों कहा था किसी सूरत में टीवी देखना दुरुस्त ही नहीं मगर ऐसा नहीं कर सकते वरना इन कमिंग (in Comming) का सुविधा खत्म हो जाएगा अगर यही हाल रहा तो कोई वईद नहीं के शराब को शराब ताहिर ठहरा कर उसे भी जाइज़ व हलाल ना कर दें मौलाना इलियास साहब एक तरफ़ तो दावत तबलीग़ और अच्छी अच्छी बातों के लिए टीवी को नाजायज़ व हराम कह रहे हैं, और दूसरी तरफ़ ख़ुद टीवी के चैनलों पर आकर लोगों को वअज़ व नसीहत और दावत व तबलीग़ कर रहे हैं अब अपनी तब्लीग़ व तारीफ़ के लिए टीवी नाजायज़ कहा बल्कि अब तो जायज़ और जाइज़ ही नहीं बल्कि कारेख़ैर सवाब नौस्त व गुफ़्त
इन्ना लिल्लाही व इन्ना इलैही रजीऊन
और एक तरफ़ यह कहते हैं कि टीवी शैतान है नापाक है इससे घरों को पाक करो और दूसरी तरफ़ ख़ुद नापाक व पलीद शैतान में घुसकर दावत व तबलीग़ कर रहे हैं अभी तक तो यही सुनने और देखने में आता था के शैतान इंसान के जिस्म में सरायत करके उससे अनाप-शनाप बकवाता है लोगों को गालियां दिलवाता है और कहीं वलीद नामी शख़्स के बुत में घुसकर आक़ा ए करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम के शाने अक़दस में गुस्ताखियां करता और कराता है लेकिन ऐसा पहली बार मुशाहिदा हुआ है कि टीवी को शैतान व नजिस कहते और जानते हुए भी कोई शख़्स शैतान में व खुशी घुसकर या शैतान के फरेबी चैनलों में आकर लोगों को ख़ैर की दावत दे मालूम नहीं कि शैतान उनको पसंद है या यह शैतान को पसंद है
यह मैं नहीं कहता बल्के मौलाना इलियास साहब खुद ही कह रहे हैं कि टीवी शैतान हैं और ख़ुद टीवी पर आकर दावत व तबलीग़ कर रहे हैं अब आप ख़ुद ही फ़ैसला कर लीजिए (के यह शैतान की गोद में बैठकर क्या कर रहे हैं)
अल इन्तिबाह👇
जिस चीज़ को शरअ् ने नाजायज व हराम क़रार दिया है और जिसके अदम जवाज़ पर (यानी नाजाइज़ होने पर) उल्मा व फ़ुक़्हा का इज्मा है उसके खिलाफ़ में कुछ बेहतर व भलाई और ख़ैर का काम हो ही नहीं सकता और ना कभी दावत व तबलीग़ हो सकती है
📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह.104--105--106--107--108)
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
एक टिप्पणी भेजें