तारीखी वाक़िआत और कव्वाली सुनना कैसा



सवाल तवारीख़ और वाक़िआत की जानकारी के लिए तस्लीम व आरिफ़ और दीगर क़व्वालों की तारीख़ी क़व्वाली सुनना, नीज़ साबिर पाक, वारिसे पाक, और ख़्वाजा ग़रीब नवाज़, और दीगर बुज़ुर्गाने दीन और औलिया ए अल्लाह की शान में औरतों की गाई हुई क़व्वालियां सुनना कैसा है

अल जवाब आजकल की क़व्वालियां अमूमन साज़ व मज़ामीर (म्यूजिक) ढोल व ताशे और बाजे सितार और बांसुरी के साथ होती हैं और इस क़िस्म का गाना बजाना हरगिज़ दुरुस्त नहीं, बल्कि नाजाइज़ व हराम व असद हराम है, और उनके साथ क़व्वाली का होना भी सख्त हराम व नाजाइज़ है, अल्लाह तआला फ़रमाता है

तर्जमा----- और कुछ लोग खेल की बातें ख़रीदते हैं, कि अल्लाह की राह से बहका दें

📚 कंज़ुल ईमान, पारा 21, सूरह ए लुक़मान, आयत 6)

और बाजा वग़ैरह के मुताल्लिक़ बुखारी शरीफ़ की हदीसे पाक में है

नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं

तर्जमा---- ज़रूर मेरी उम्मत में ऐसे लोग होंगे जो औरतों की शर्मगाह यानी ज़िना और रेशमी कपड़े और शराब और बाजों को हलाल फहराएंगे

📚 ब हवाला फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 199, निस्फ़ अव्वल)

और हज़रत अल्लामा इब्ने आबिदीन शामी मज़कूरा (ऊपर ज़िक्र की गई) आयाते मुबारका नक़ल फ़रमाने के बाद
لهو الحديث
के मुताल्लिक़ फ़रमाते हैं

اى مايلهى عما يعنى كا لا احاديث التى لا اصل لها

यानी-ऐसी बातों से खेलकूद लहव व लइब की जाए जिनकी कोई असल नहीं फिर चंद सतरों के बाद तहरीर फ़रमाते हैं कि इन मलाही में मुआज़िफ़ (यानी गाने बजाने के आलात) भी दाखिल हैं
المعارف اى الملاهى

📗 रद्दुल मोहतार जिल्द 9 सफ़ह 608, मुलख़सन)

और डफ़ व मज़ामीर (म्यूजिक) के साथ शिमअ् के बारे में इसी रद्दुल मोहतार में है

استماع ضرف الدف والمز مارو غير ذلك حرام

📚 रद्दुल मोहतार जिल्द 9 सफ़ह 566)

और मुजद्दिदे आज़म सरकार आलाहज़रत अलैहिर्रहमह मज़ामीर (म्यूजिक) के साथ क़व्वाली के बारे में तहरीर फ़रमाते हैं

क़व्वाली हराम है और हाज़िरीन (यानी जितने भी लोग वहां मौजूद हैं) सब गुनाहगार हैं

📚 फ़तावा रज़वियह, अल मर्जउस्साबिक़)

और उसका सुनना भी हराम है खुसूसन औरतों की कव्वालियां इसलिए के औरत की आवाज भी औरत हैं

صوت المراة عورة

कहा जाता है इसीलिए औरतों को अपनी आवाज़ बुलंद करना हराम है

رفع صوتهن حرام

📚 रद्दुल मोहतार जिल्द 2, सफ़ह 48)

तो जिस तरह अजनबी औरत को देखना हराम है इसी तरह उसकी आवाज सुनना भी हराम है

जैसा के हुज़ूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं

औरतों का गाना जब मज़ामीर (म्यूजिक) के साथ हो या आवाज़ अजनबी तक पहुंचे यह भी हराम है

📚 फ़तावा अमजदयह, जिल्द 4 सफ़ह 42)

लिहाज़ा मुरव्वजह क़व्वालियां सुनना हरगिज़ दुरुस्त नहीं ख़्वाह मर्द की हो या औरत की बल्के नाजाइज़ व हराम और गुनाह हैं,

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 44--45--56)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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