सवाल तालीमी ताश खेलना कैसा है
अल जवाब शरीअत ने हर तरह के खेल और अबस काम को नाजाइज़ ठहराया है और तालीमी ताश भी एक तरह का खेल ही है
हदीसे पाक में है
तिर्मिज़ी व अबू दाऊद और इब्ने माजा हज़रत उक़्बा बिन आमिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत करते हैं कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया
كل شيء يلهو به الرجل باطل الا رميه بقوسه وتا ديبه فرسه وملا عبته عمرا ته فانهن من الحق
जितनी चीज़ों से आदमी खेलता है सब बातिल हैं, मगर कमान से तीर चलाना और घोड़े को अदब देना और बीवी के साथ मुलाअबत करना यह तीनों हक़ हैं
📚 तिर्मिज़ी किताबुल फ़ज़ाइलुज्जिहाद बाब माजा फ़ी फ़ज़लुर्रमी फ़ी सबीलिल्लाह, जिल्द 3, सफ़ह 238)
और हुज़ूर आलाहज़रत अलैहिर्रहमह् फ़रमाते हैं
यह सब खेल ममनू व नाजाइज़ हैं अगरचे बअ्ज़ उल्मा ने बअ्ज़ रिवायात में चंद शर्तों के साथ जाइज़ बताया है
1-बद कर ना हो
2-नादिरन कभी कभी हो, आदत ना डालें
3-उसके सबब नमाज़ या जमाअत ख़्वाह किसी वाजिब शरई में खलल ना आए
4-उसपर क़स्में न खाया करें
5-फ़हश न बकें (गंदी बातें या गाली गलोंच न करें) मगर तहक़ीक़ यह कि मुतलक़न मना है
और हक़ यह के इन शर्तों का निबाह हरगिज़ नहीं होता, खुसूसन शर्ते दोम (2) व सोम (3) के जब उसका चस्का पड़ जाता है जरूर मदावमत करते हैं, और ला अक़ल वक़्ते नमाज़ में तंगी या जमाअत में बेशक होती है जैसा के तजुर्बा इस पर शाहिद और बिल फ़र्ज़ हज़ार में एक आध आदमी ऐसा निकले के इन शराइत का पूरा लिहाज़ रखे तो नादिर पर हुक्म नहीं होता
📚 फ़तावा रज़वियह, जिल्द 9, सफ़ह 44, निस्फ़ अव्वल, पुराना ऐडीशन)
अल इन्तिबाह
बहरहाल तालीमी ताश की इजाज़त हरगिज़ नहीं दी जा सकती, हर खेल और अबस फ़ेएल जिसमें ना कोई ग़र्ज़े दीन ना कोई मनफ़अ्त जाइज़ दुनियवी हो, सब मकरूह व बेजा हैं, कोई कम कोई ज़्यादा और हदीस में 3 खेल के अलावा को बातिल क़रार दिया गया है, लिहाज़ा इससे भी इजतिनाब ज़रूरी है, क्योंकि इस तरह का हर खेल ममनु व नाजाइज़ है
📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह. 143--144)
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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