शादी में कल्शा भरने जाना कैसा


सवाल शादी के एक-दो दिन पहले औरतें गाना गाते हुए कलसा भरने जाती हैं और फिर शादी के दूसरे तीसरे दिन गाना गाते हुए दूल्हा के सेहरा मकना को बहाने जाती हैं, फिर देवर, भाभियां, दूल्हा और उसके अहले खाना व रिश्तेदार एक दूसरे से हंसी मज़ाक़ करते हुए गंदा पानी और धूल वगैरह नहलाते हैं, तो क्या हुक्म है

अल जवाब औरतों का गाना गाना ही नाजाइज़ व हराम है, इसलिए के औरत की आवाज़ भी औरत है

صوت المراة عورة

और यह गाने उमूमन इश्क़ व मुहब्बत और विसाल व हिज्र के अशआर और फ़हश व बेहूदा कलिमात पर मुश्तमिल होते हैं और ऐसा गाना बुरा ही नहीं बल्कि सख्त बुरा है इसलिए कि

हदीसे पाक में गाना को ज़िना का मंतर कहा गया है

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है

आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया


الغناء رقية الزناء

📚 मिर्क़ात शरहे मिश्कात जिल्द 2 सफ़ह 249)

यानी गाना ज़िना का मंतर है, लिहाज़ा गाना गाते हुए कलसा भरने जाना और सेहरा, मकना फेंकने जाना, नीज़ गंदा पानी और धूल वगैरह नहलाना और मर्द व औरत का हंसी मज़ाक़ करना यह सब रसम नाजाइज़ व हराम और गुनाह है

मुजद्दिदे आज़म सरकार आला हज़रत अलैहिर्रहमह मर्द व औरत के हंसी मज़ाक़ के मुताल्लिक़ इरशाद फ़रमाते हैं

औरत और मर्द के मज़ाक़ का रिश्ता शरीअत ने कोई नहीं रखा, यह शैतानी व हिंदवानी रसम है

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9 सफ़ह 170, निस्फ़ आखिर)

अव्वलन तो यह गंदे पानी और धूल वगैरह नहलाते हैं दूसरे यह कि जिस वक़्त कपड़ा पानी से भीगेगा बदन से ज़रूर चिपकेगा जिससे आज़ा की हैयाअत साफ़ मालूम होगी और सब खास व आम और मेहरम व गैर मेहरम अजनबी मर्द वगैरह निगाह करेंगे जो के हराम है

जैसा के फ़कीहे आज़म हुजूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ह हज़रत अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं

कपड़ा बदन से बिल्कुल ऐसा चिपका हुआ है के देखने से उज़ू की हैयाअत मालूम होती है तो इसकी तरफ़ नज़र करना जाइज़ नहीं

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 3, सफ़ह 42)📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 153--154)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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