मैयत पर औरत को रोना कैसा


सवाल मैयत पर औरत को बुलंद आवाज़ से चिल्ला चिल्ला कर रोना कैसा है

अल जवाब हराम है और मैयत पर तकलीफ़ व अज़ाब होने का बाइस व सबब भी है

जैसा के हदीसे पाक में है

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कहते हैं कि नबी ए पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया

ख़बरदार होकर सुन लो के आंख के आंसू और दिल के ग़म के सबब ख़ुदा ए तआला अज़ाब नहीं फ़रमाता है (और ज़बान की तरफ़ इशारा करके फरमाया) लेकिन इसके सबब अज़ाब या रहम फ़रमाता है, और घरवालों के रोने की वजह से मय्यत पर अज़ाब होता है, (जबकि उसने रोने की वसीयत की हो, या वहां रोने का रिवाज हो और उसने मना ना किया हो या यह मतलब है कि उनके रोने से मय्यत को तकलीफ़ होती है

📗 बुख़ारी शरीफ़📔 मुस्लिम शरीफ़📘 बा हवाला अनवारुल हदीस, सफ़ह 240)

अल इन्तिबाह

(1) नोहा यानी मैयत के ओसाफ़ मुबालग़ा के साथ बयान करके आवाज़ से रोना जिसको बय्यन بین कहते हैं यह बिल इज्मा हराम है, आवाज़ से रोना मना है, और आवाज़ बुलंद ना हो तो उसकी मुमानअ्त नहीं

(2) गिरेबान फाड़ना, मुंह नोचना, बाल खोलना, सर पर मिट्टी डालना, रान पर हाथ मारना, सीना कूटना और औरतों का एक दूसरे से गले मिलकर तेज़ तेज़ आवाज़ से रोना सब जाहिलियत के काम हैं और नाजाइज़ व गुनाह हैं

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 171)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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