सवाल बअ्ज़ जाहिल औरत व मर्द यह समझते हैं कि एक आदमी का मर्ज़ दूसरे को लग जाता है तो क्या हुक्म है
अल जवाब यह ख़याल बिल्कुल ग़लत महज़ जहालत है
सहीह् बुख़ारी में है
हजरत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया
لا عدوى ولا طيرة ولا هامة ولا صفرو فر من المجزوم كما تفر من الاسدعدوى
अदवी यानी मर्ज़ का लगना मुतअद्दी होना नहीं और ना बदफ़ाली है और ना हाम्मह (यानी उल्लू को मनहूस जानने का कोई ऐतबार नहीं) ना सुगर और मजज़ूम से भागो, जैसे शेर से भागते हो
📘 बुख़ारी किताबुत्तिब्ब बाबुलजुज़ाम, जिल्द 2 सफ़ह 850)
और दूसरी हदीस में है
जब नबी पाक सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ऐसा ने फ़रमाया
فقال اعرابى يا رسول الله فما بال ابلى تكون فى الرمل كانها اظباء فياتى البعير الاجرب فيد خل بينها فيجربها فقال فمن اعدوى الاول
तो एक एरावी ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इसकी क्या वजह है के रेगिस्तान में ऊंट हिरन की तरह साफ़ सुथरा होता है और ख़ारिश्ती ऊंट जब इसके साथ मिल जाता है तो उसे भी ख़ारिश्ती कर देता है हुजूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया
पहले को किसने मर्ज़ लगा दिया
यानी जिस तरह पहला खारिश्ती हो गया दूसरा भी हो गया
📘 बुख़ारी किताबुत्तिब्ब बाबुलअसगर, जिल्द 2 सफ़ह 851)
और हुज़ूर शदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं
मर्ज़ का मुतअद्दी होना यानी एक का मर्ज़ दूसरे को लगना ग़लत है और मजज़ूम से भागना सद ज़राए है (यानी ज़राए रोकने) के क़बील से है, कि अगर उससे मेलजोल मैं दूसरे को जुज़ाम पैदा हो जाए तो यह ख़याल होगा के मेलजोल से पैदा हुआ, इस खयाले फ़ासिद से बचने के लिए हुक्म हुआ कि इससे अलहैदा रहो
📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 503)
📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह. 138--139)
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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