औरतों का आपस में हंसी मजाक करना कैसा


सवाल एक जगह सिर्फ़ औरतें हैं कोई मर्द मेहरम और ग़ैर मेहरम नहीं वह आपस में हंसी मज़ाक़ करती हैं, तो क्या हुक्म है

अल जवाब जाइज़ है जबकि ख़ुराफ़ात बेहूदा और फ़हश (गंदे) कलिमात और झूट व गाली गलौंज पर मुस्तमिल ना हो नीज़ किसी मुसलमान की इज़ार सानी ना हो (यानी किसी मुसलमान का दिल न दुख़े) और मज़ाह अगर खुशतबई के लिए हो तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की सुन्नत भी है

अल्लामा अब्दुज्जवादुद्दवी मिसरी अपनी किताब अत्तहाफ़ुररिबानियह मैं तहरीर फ़रमाते हैं

हजरत सुफ़ियान बिन अईयना रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से किसी ने कहा कि क्या मज़ाह भी एक आफ़त है आप रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने जवाबन फ़रमाया नहीं बल्कि सुन्नत है मगर उस शख़्स के लिए जो अच्छा मज़ाक कर सकता हो, और उसकी अदायगी के मवाक़े जानता हो

📗 अत्तहाफ़ुररिबानियह सफ़ह 286)

और हज़रत अनस बिन मालिक रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है

एक शख्स ने रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम से सवारी तलब की (मांगी) तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने बतौरे मज़ाह फ़रमाया के मैं तो तुझे ऊंटनी के बच्चा पर ही सवार करूंगा इस शख़्स ने कहा कि मैं ऊंटनी का बच्चा लेकर क्या करूंगा तो आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया कि क्या ऊंटनी के अलावा कोई ऊंट भी बच्चा जनता है, यानी के हर ऊंट तो वह ऊंटनी का ही बच्चा होता है

📘 मिश्कात बाबुल मज़ह सफ़ह 416)

इसके अलावा और भी आहादीस व वाक़िआत से साबित है कि आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने खुशतबई के लिए मज़ाह फ़रमाया जैसा के एक बूढ़ी औरत से आपने फरमाया

لا تدخل الجنة عجوزا

यानी कोई बूढ़ी औरत जन्नत में दाखिल ना होगी

📗 कमाफ़िल मिश्कात (अल मर्जउस्साबिक़)

और यह हक़ीक़त है कि जन्नत में सब जवान होकर कुंवारे और कुंवारियां दाखिल होंगे

और हुज़ूर सदरुश्शरिअह बदरुत्तरीक़ह अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं

हंसी मज़ाक़ में अगर बेहूदा बातें गाली गलौंज और किसी मुस्लिम की इज़ार सानी ना हो महज़ पुर लुत्फ़ और दिलखुश कुन बातें हों, जिन से अहले मजलिस को हंसी आए और खुश हों इसमें हर्ज नहीं

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 16, सफ़ह 132)

मर्द का मर्दों से और औरत का औरतों से हंसी मज़ाक़ करना जाइज़ बल्कि सुन्नत है, मर्द का औरतों से और औरत का मर्दों से हंसी मज़ाक़ करना हरगिज़ दुरुस्त नहीं

और जो हदीसे पाक में है कि आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने औरतों से मज़ाक़ फ़रमाया वह आयते हिजाब (पर्दा) के नुज़ूल से क़ब्ल (पहले) का वाक़या है और दूसरी बात यह है के यह आप सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम की खुसूसियत है जो आपके सिवा दूसरे में नहीं आ सकती

ऐसा मज़ाक़ जिसमें शरिअतन कोई बुराई ना हो बिल्कुल जाइज़ है और तिब्बी व साइंसी नुक्ता ए नज़र से इसके बहुत ज़्यादा फ़वाइद भी हैं

फ़ायदा👇🏿

हक़ीक़त पर मबनी मज़ाह व ख़ुश तबई के ज़रिए दिलों पर गहरा असर पड़ता है

ग़म व आलाम और परेशान कुन तख़यलात दूर हो जाते हैं, और इंसानी रूह वज्द में आकर माज़ी की (गुज़री हुई) तल्ख़ियों को भूल जाती है, और हमारी ख्वाहिशों वलवलो और तमन्नाओं को बेदार करके नई राहों पर डाल देती हैं, जिससे कमज़ोर पुश्त हिम्मत और वहमी दिल उन बुरे ख़यालात परेशानियाें और टेंशन से मग़लूब होने से बच जाते हैं, हज़ारों बरस पुरानी यह कहावत आज भी हर्फ़ ब हर्फ़ सही व सादिक़ साबित हो रही है

खुशतबई वर्ज़िस और खेल जिस्म की ग़िज़ा हैं, उनके जरिए इंसान पर कैफ़ व सुरूर तारी हो जाता है, वह दुनिया की तलख़ियों शोर व गुल और मारधाड़ की परेशान कुन फ़िजा से निकलकर एक पुरसुकून माहौल में दाखिल हो जाता है, 10----12 घंटे रिज़्क़ की तलाश में दौड़ना भागना तुर्श रूई सख़्त कलामी और नाकामियों से इंसान के दिल को ज़रूर बिल ज़रूर एक अज़ीम सदमा पहुंचता है, जो खुश तबई वर्ज़िश और खेलकूद से ही दूर किया जा सकता है, अल्लाह तआला ने हमें ताज़ा दम करने के लिए नींद जैसी बलज़्ज़त और मीठी व मदहोश शय को पैदा फ़रमाया लेकिन आज की नई तख़रिआत और इजादात की गहमागहमी और शोर व ग़ोगा ने इस नींद की नेमत को भी हमसे छीन लिया रेडियो और टीवी के साज़ व सारंगी वाले गाने और सिनेमाओं की फ़हस और बुराई में अटी हुई फिल्में हमारे जज़्बात को बढ़ाकर सुकून व इत्मीनान की जगह परेशानियों और ख़ाम खयालियों में इज़ाफ़ा कर रही हैं, ज़िकरुल्लाह (अल्लाह तआला का ज़िक्र) व ज़िक ए रसूल (सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम) केबाद अपनी परेशानियों को ख़त्म करने का सबसे बेहतर और आसान हल खुशतबई भी है, जैसा के मशहूर साइंसदां हकीम फलसफ़ी अफ़लातून ने कहा था कि ग़मज़दा इंसानों को खुशतबई अपनानी चाहिए क्योंकि दिल्लगी की बातों से ग़म दूर हो जाते हैं, और परेशानी के असरात से बुझी हुई दिल की रोशनी दोबारा बेदार हो जाती है

आजकल खुशतबई को एक बहुत बड़ा मुअस्सर तरीक़ा ए इलाज क़रार दिया गया है, और इससे बहुत

मतनूअ् अमराज़, के इलाज में मदद ली जाती है, यह अमराज़ जिस्म के किसी भी हिस्से से ताल्लुक रखते हों खुश तबई इन अमराज़ में फ़ायदा कुन है खुश तबई से आसाब और दिमाग़ के अमराज़ से लेकर दन-दान साज़ी तक का इलाज किया जाता है, ख़ुश तबई ऐसी दवा है जो बड़ी ख़ामोशी आहिस्तग़ी और सुकून के साथ मरीज़ पर असर डालती है, लेकिन यह असर बड़ा ही देरपा और मुफ़ीद होता है खुशतबई मोआलिजीन का एक बहुत बड़ा नफ़़्सियाती हरबा भी साबित है और मुआलिजीन व माहिरीन मरीज़ों को कीमियाई मेडिसिन के बजाय निहायत बे ज़रर और मुअस्सर मेडिसिन (खुशतबई) दे रहे हैं जिसका असर महंगी दवाओं की तरह ना पायदार नहीं बल्कि यह इलाज उनकी रूह को नई फ़रहत उम्मीद और क़ुव्वत दे रहा है

मग़रिबी मुमालिक में कई जेलखानों, दिमागी अमराज़ के हस्पतालों में मंशियात के आदि लोगों की इस्लाह और बहाली के मराकिज़ और नफ़़्सियाती इलाज गाहों में खुशतबई और मज़ाक के ज़रिए से मरीजों को हकाइक़ तस्लीम करने और सेहतमंद होने में मदद ली गई है, खुशतबई बेचैन मुज़तरिब ज़हन कुर्ब के निकास और इज़हार के सबसे ज़्यादा मौअस्सर ज़रिए हैं इसलिए उनको "मुजरिम ज़मीर" के ऐतराफ़े जुर्म का आला क़रार दिया गया है, यह अगर इसलाहे जात कर भी ना सकें तो कम अज़ कम मरीज़ को ज़हनी क़ुर्ब और अज़ाब से निकाल देते हैं

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 155--156--157--158)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

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