सवाल मैंने असर की नमाज़ पढ़ी और फिर मगरिब की नमाज़ पढ़ते वक़्त शक हुआ के मेरा वुज़ू बाकी है या नहीं तो अब मैं नमाज़े मगरिब के लिए वुज़ू करुं या उसी वुज़ू से नमाज़ पढ़ूं तो क्या नमाज़ हो जायेगी और मुझे अक्सर वुज़ू के बाद शक होता रहता है के मेरा वुज़ू है या नहीं इसके बारे में कुछ बतायें मैं क्या करुं
जवाब सिर्फ शक से वुज़ू नहीं टूटता यक़ीनन आप उस वक़्त तक बा वुज़ू हैं जब तक वुज़ू टूटने का ऐसा यक़ीन न हो जाए के क़सम खा सकें- बहारे शरीयत में है के अगर दौराने वुज़ू किसी अज़ू के धोने में शक वाके हो और ये ज़िंदगी का पहला वाकिया है तो इसको धो लें और अगर अक्सर शक पड़ा करता है तो उसकी तरफ तवज्जो न दें इसी तरह वुज़ू के बाद भी शक पड़े तो इस का कुछ ख्याल न लें, इसी तरह आप बा वुज़ू थे , अब शक आने लगा के पता नहीं वुज़ू है या नहीं, ऐसी सूरत में आप बा वुज़ू हैं क्योंकि सिर्फ शक से वुज़ू नहीं टूटता
📚 बहारे शरीयत जिल्द 1 सफह 310 📚 दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफह 310
कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश
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