औरत को ग़ैर महरम का झूटा खाना पीना कैसा है


सवाल औरत को ग़ैर महरम अजनबी मर्द का झूटा खाना पीना कैसा है

जवाब अगर मालूम हो के ये फलां मर्द का झूटा है तो बतौरे तलज़्ज़ुज़़ (लज़्ज़त के तौर पर) औरत के लिए उसका खाना-पीना मकरूह व नाजाइज है इसी तरह अगर मर्द को मालूम है के ये फलां औरत का झूठा है तो उसे भी लज़्ज़त के तौर पर खाना-पीना दुरुस्त नहीं, जैसा के रद्दुल मोहतार में है

और अगर मालूम न हो के झूटा किस मर्द का है या किस औरत का है या लज़्ज़त के तौर पर इस्तेमाल ना करें तो कोई हर्ज नहीं, और बहारे शरिअत में है कि

मर्द को अजनबिया औरत का झूटा और औरत को अजनबी मर्द का झूटा मकरूह है ज़ौजा (बीवी) व मुहारिम के झूठे में हर्ज नहीं

📚 बहारे शरिअत हिस्सा 16 सफ़ह 255

तम्बीह कराहत उस सूरत में है के जबकि तलज़्ज़ुज़़ (लज़्ज़त) के तौर पर हो और अगर तलज़्ज़ुज़़ मकसूद ना हो बल्के तबर्रुक के तौर पर हो जैसा के आलिमे बाअमल और बा शरह पीर का झूटा के उसे तबर्रुक समझ कर लोग खाते पीते हैं इसमें हर्ज नहीं

📗 औरतों के जदीद और अहम मसाइल, सफ़ह 159/160)

कत्बा अल अब्द खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्लाह अलैहि बस स्टैंड किशनपुर जि़ला फतेहपुर उत्तर प्रदेश

Post a Comment

और नया पुराने