सवाल आजकल लड़कियां बतौरे फ़ैशन और ज़ीनत व आराइश के लिए नाख़ून को बड़ा रखती हैं, तो क्या हुक्म है
अल जवाब नाख़ून बड़ा रखना मना है, क्योंकि नाखूनों का बड़ा होना तंगी ए रिज़्क़ का सबब है और हफ्ता यानी जुमा के दिन तराशना बेहतर है, हफ्ते में ना हो सके तो 15.वें दिन और ज्यादा से ज्यादा 40.वें दिन उसके बाद ना तरशवाना सख्त मना है
हदीसे पाक में है कि जुमा के दिन नाखून तरशवाए अल्लाह तआला उसको दूसरे जुमा तक बलाओं से महफूज़ रखेगा बल्के और तीन दिन ज़ाइद यानी 10 दिन तक आफ़ात व बलइय्यात से महफूज़ व मामून होगा
📗 मिर्क़ातुल मुफ़ातेह, किताबुल्लिबास, बाबुत्तरज्जुल, जिल्द 8, सफ़ह 212)
और सहीह् मुस्लिम में हज़रत अनस रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से मरवी है फरमाते हैं कि नाखून तरशवाने और मूंछ काटने और बग़ल के बाल लेने में हमारे लिए यह मियाद मुक़र्रर की गई थी के 40 दिन से ज़्यादा ना छोड़ रखें यानी 40 दिन के अंदर इन कामों को ज़रूर कर लें
📔 मुस्लिम, किताबुत्तहारत, बाब ख़िसालुल फ़ितरत, सफ़ह 153)
और आक़ा सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम इरशाद फ़रमाते हैं कि जो मुए ज़ेरे नाफ़ को ना मूंडे और नाखून ना तराशे और मूंछ ना काटे वह हम में से नहीं
📚 अल मुसनदुल इमाम अहमद बिन हम्बल, जिल्द 9, सफ़ह 153)
हदीस रजुल मिन बिन ग़फ़्फ़ार रज़िअल्लाहू तआला अन्ह)
अल इन्तिबाह आजकल अक्सर औरत व मर्द और खासकर नौजवान लड़के और लड़कियां बतौरे फ़ैशन अपने हाथ की छंगुलियां यानी छोटी उंगली और ज्यादातर लड़कियां तो पूरी उंगलियों के नाखून को बग़ैर तराशे ही छोड़े रखती हैं, जो काफी बड़े हो जाते हैं,
वह हज़रात ध्यान दें कि उससे कितनी ख़तरनाक बीमारी पैदा होती है, क्योंकि नाखून में गर्द व ग़ुबार, मैल कुचैल और बसा औक़ात (कभी कभी) पाखाना वगैरह भी चला जाता है, और वहां जाकर इस तरह जम जाता है कि बग़ैर नाखून तराशे या किसी बारीक शै (चीज़) से जो उसके अंदर जा सके उसके बग़ैर दूर ही नहीं हो सकता है, इस तरह नाखून के अंदर मैल व नजासत काफ़ी दिन तक रहकर बहुत सी मोहलिक बीमारियां और जराशीम पैदा करती हैं, जो बहुत ही ख़तरनाक मिसले ज़हर हिला हिल होते हैं
और दूसरी बात यह है कि नाखून में एक ज़हरीला माद्दा होता है, जैसा के हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार ख़ान नईमी अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं नाख़ून में एक ज़हरीला माद्दा होता है, अगर नाखून खाने या पानी में डुबोए जाएं तो वह खाना बीमारी पैदा करता है, इसलिए अंग्रेज वगैरह छुरी कांटे से खाना खाते हैं, क्योंकि ईसाईयों के यहां नाखून बहुत कम कटवाते हैं, और पुराने ज़माना के लोग वह पानी नहीं पीते थे, जिसमें नाखून डूब जाए मगर इस्लाम ने उसका यह इंतज़ाम फ़रमाया के नाखून कटवाने का हुक्म दिया और छुरी, कांटे की मुसीबत से बचा लिया
📘 इस्लामी ज़िंदगी सफ़ह 74)
📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 61--62)
✍️कत्बा अल अबद ख़ाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रिज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्ला अलैहि बस स्टैंड किशनपुर यूपी
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