जवाब अगर ज़ख्म पर पट्टी वगैरह बंधी है और उसको खोलने में नुक़सान है तो उस पूरे अज़ू का मसह़ करें और न हो सके तो पट्टी पर मसह़ करे
और पट्टी मोज़अ हाजत से ज़्यादा न रखी जाये वरना मसह काफी ना होगा और अगर पट्टी मोज़अ हाजत पर ही बंधी है मसलन बाज़ू पर एक तरफ ज़ख्म है और पट्टी बांधने के लिए बाज़ू की इतनी सारी गोलाई पर होना उसका ज़रूर है तो उसके नीचे बदन का वो हिस्सा भी आयेगा जिसे पानी ज़रर (नुकसान) नहीं करता तो अगर खोलना मुमकिन हो खोलकर उस हिस्सा का धोना फ़र्ज़ है और अगर नामुमकिन हो अगरचे यूंही के खोलकर फिर वैसी ना बांध सकेगा और उसमें ज़रर का अंदेशा है तो सारी पट्टी पर मसह करले काफ़ी है बदन का वो अच्छा हिस्सा भी धोने से माफ़ हो जाएगा
📚बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 2 सफह 318
अज़ क़लम 🌹 खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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