क्या इल्मे अक़ाइद सीखना फ़र्ज़ है

 


सवाल  क्या इल्मे अक़ाइद सीखना फ़र्ज़ है

अल जवाब इल्मे अक़ाइद का सीखना हर मुसलमान मर्द व औरत पर फ़र्ज़ है जिनके एतेक़ाद से मुसलमान सुन्नीउल मज़हब होता है, और इंकार करने से काफ़िर

इमामे अहले सुन्नत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत सरकार आलाहज़रत अलैहिर्रहमह फ़रमाते हैं


हदीस


طلب العلم فريضة على كل مسلم


कि बबजहे कसरते तुर्क़ व तअ्द्दुद मख़ारिज हदीस हसन है

इसका सरीह मफ़ाद हर मुसलमान मर्द व औरत पर तलबे इल्म की फ़र्जीयत तो यह सादिक़ ना आएगा, मगर उस इल्म पर जिसका तअ्ल्लुम फ़र्ज़े एन हो और फ़र्ज़े एन नहीं मगर इन उलूम का सीखना जिनकी तरफ़ इंसान बिल फ़ेएल अपने दीन में मोहताज हो उनका अअम व असमल व आला व अकमल व अहम व अजल इल्मे उसूल अक़ाइद है, जिनके एतेक़ाद से आदमी मुसलमान सुन्नीउल मज़हब होता है, और इन्कार व मुख़ालिफ़त से काफ़िर या विदअती

वल अयाज़ू बिल्लाह

सब में पहला फ़र्ज़ आदमी पर उसका तअ्ल्लुम है और उसकी तरफ़ एहतियाज मैं सब यकसां, फिर इल्मे मसाइले नमाज़ यानी उसके फ़राइज़ व शराइत व मुफ़सीदात जिनके जानने से नमाज़ सही तौर पर अदा कर सके, फिर जब रमज़ान आए तो मसाइले सोम, मालिके निसाब नामी हो तो मसाइले ज़कात साहिबे इस्तिताअत हो तो मसाइले हज, निकाह करना चाहे तो उसके मुताल्लिक़ ज़रूरी मसअले, ताजिर हो तो मसाइले बई व शरा, मज़ारअ् पर मसाइले ज़राअत, मोजिर व मुस्ताजिर पर मसाइले इजारह

📚 फ़तावा रज़वियह जिल्द 9, सफ़ह 16)

📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह.116--117)


(यानी ज़िन्दगी में जिन जिन मसाइलों की ज़रूरत है उनको सीखे वरना सख़्त गुनाहगार होगा)

अज़ क़लम 🌹 खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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