सवाल जो औरतें इस क़दर बूढ़ी हो गईं कि निकाह की ख़्वाहिश नहीं रखतीं तो उनको घर में रहते हुए ऊपर का कपड़ा उतारना कैसा है
अल जवाब उतार सकती है, जाइज़ है जबके सिंगार ना ज़ाहिर करे
अल्लाह तआला फ़रमाता है
तर्जमा घर में क़याम पज़ीर बूढ़ी औरतें जो निकाह की तमन्ना नहीं रखतीं उन पर अपने बालाई कपड़े उतारने में कोई हर्ज नहीं, जबके सिंगार ना चमकाए और अगर उससे भी परहेज़ करे तो बेहतर है अल्लाह तआला सुनने वाला जानने वाला है 📚 पारा 18, सूरह नूर आयत नः 60)
तफ़्सीरे अहमदियह में है इस आयते करीमा के तहत मज़कूर है कि आयत में लफ़्ज़े قواعد क़ाअ्दा की जमा है (जिसका मअ्ना घर में बैठी रहने वाली औरत है)यह शर्त के मअ्ना के मुतज़मन है इस लिए इसकी खबर पर हर्फ़े فا फ़ा लाया गया, यानी फ़लीस जनह, को हर्फ़े फ़ा से शुरू किया गया माना यह है कि ऐसी औरतें जो हैज़ से और औलाद से बैठ (ना उम्मीद) हो गईं और उन्हें निकाह का तमा और स्तेहा नहीं क्योंकि वह बहुत बूढ़ी हो गई तो ऐसी औरतों पर इसमें कोई गुनाह नहीं कि वह अपने ज़ाहिरी कपड़े उतार रखें मसलन लिफ़ाफ़ा (बुर्क़ा और दुपट्टे के ऊपर ओढ़ी हुई चादर वगैरह इसकी तमाम तफ़ासीर ने तसरीह कर दी है और इस पर बारी तआला का क़ौल
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भी दलालत कर रहा है, क्योंकि इसका म्अना यह है कि वह औरतें उस ज़ीनत को ज़ाहिर न करने वाली हों, जिसको छुपाने का हुक्म अल्लाह तआला ने अपने इस क़ौल
ولا يبد ين رينتهن
में दिया है या यह मअ्ना के उन फ़ालतू कपड़ों के उतार रखने से उनका यह इरादा न हो कि अब वह लोगों को अपनी ज़ीनत दिखा सकेंगे, यानी सर और कान वगैरह, बल्कि उनका मक़सद यह होना चाहिए कि हमने ज़ाइद कपड़ों को गर्मी दूर करने के लिए उतारा है, जैसा के कुतुबे तफ़्सीर में लिखा है, बहर हाल दोनों तफ़्सीरों का हाल एक ही है
📚 तफ़्सीराते अहमदियह मुतर्जम सफ़ह नः 770)
लेकिन बेहतर और अनसब (मुनासिब) यही है कि वह भी अपने बालाई कपड़े मसलन ओढ़नी, बुर्क़ा, लिफ़ाफ़ा वगैरह को न उतारे,
📔 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह नः 94--95)
✍️कत्बा अल अबद ख़ाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रजा़ रिज़वी ख़तीब व इमाम सुन्नी मस्जिद हज़रत मन्सूर शाह रहमतुल्ला अलैहि बस स्टैंड किशनपुर यूपी
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