बददीन व बदमज़हब से सलाम करना कैसा

 


सवाल बददीन व बदमज़हब से सलाम करना और सलाम में उनका तरीक़ा इख़्तियार करना कैसा है

अल जवाब बदमज़हब व बददीन जैसे काफ़िर, मुर्तद, देवबंदी, वहाबी और ग़ैर मुक़ल्लिद वगैरह से सलाम करना हराम व नाजाइज़ है

हदीसे पाक में है

हज़रत जाबिर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत है कि हुज़ूर अलैहिस्सलातू वस्सलाम ने फ़रमाया कि


ان لقيتمو هم فلا تسلموا عليهم

अगर तुम्हारी मुलाक़ात बदमज़हबों से हो तो उन्हें सलाम ना करो

📗 अनवारुल हदीस, सफ़ह 398)

हज़रत उमर बिन शेअ्बा रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा अपने बाप से और वह अपने दादा से रिवायत करते हैं कि

हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया

जो शख़्स (सलाम करने में) गैरों की मुशाबिहत इख़्तियार करे वह हम में से नहीं

यहूदो नसारा की मुशाबिहत इख़्तियार न करों, यहूदियों का सलाम उंगलियों के इशारे से है, और नसारा का सलाम हथेलियों के इशारे से है📗 तिर्मिज़ी जिल्द 04 सफ़ह नः 319)

अल इन्तिबाह👇

काफ़िर और बददीन व बदमज़हब को इब्तिदाअन सलाम नाजाइज़ है, अगर बबजहे मजबूरी करना पड़े तो सलामे शरई की इजाज़त नहीं, लाला, बाबू, या मुंशी साहब, वग़ैरह कह ले, और अगर काफ़िर सलाम करे तो जवाब में सिर्फ़ व अलैक कहे (या हदाकल्लाह कहे) और अगर सलाम सलाम करे तो ऐसे ही लफ्ज़े राइजा से जवाब दे, या जिस लफ़्ज़ से मुनासिब जाने जवाब दें

और मज़कूरा अहादीस से यह भी मालूम हुआ कि हाथ के इशारे से और उंगलियों के इशारे से मुसलमानों को आपस में सलाम करना हराम है

औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह.115//116)

अज़ क़लम 🌹 खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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