सवाल बिदअत किसे कहते हैं और उसकी कितनी किस्में हैं।
जवाब इसतिलाहे शरअ में (इस्लामी बोली) में बिदअत ऐसी चीज़ के ईजाद करने को कहते हैं जो हुजूर अलैहिस्सलाम के ज़ाहिरी ज़माना में न हो ख़्वाह वह चीज़ दीनी हो या दुनियावी📚अशिअतुल्लमआत जिल्द अव्वल सफ़ा 125
और बिदअत की तीन (3) किस्में हैं
1). बिदअते हसना
2). बिदअते सैय्यह, और
3). बिदअते मुबाह
बिदअते हसना वह बिदअत है जो कुरान व हदीस के उसूल व क़वाइद के मुताबिक हो और उन्हीं पर क़ियास किया गया हो।
इसकी दो (2) किस्में हैं 👇
अव्वल बिदअते वाजिबा जैसे कुरान व हदीस समझने के लिए इल्मे नहव का सीखना और गुमराह फ़िरके मसलन खारज़ी, राफ़ज़ी, कादियानी और वहाबी वगैरा पर रद्द के लिए दलाइल कायम करना
दोम बिदअते मुसतहब्बा जैसे मदरसों की तामीर और वह नेक काम जिसका रिवाज इबतिदाइ (शुरू) ज़माना में नहीं था जैसे अज़ान के बाद सलात पुकारना
दुर्गे मुख्तार बाबुल आज़ान में हैं कि अज़ान के बाद अस्सलातु वस्सल्लमु अलैक या रसूलल्लाह पुकारना, माहे रबीउल आखिर सन 781 हिजरी में जारी हुआ और यह बिदजते हसना (अच्छा) है।
अज़ क़लम 🌹 खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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