पढ़ने पढ़ाने से मुतअल्लिक कुछ गलतफहमियाँ
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आज कल कसरत से मुसलमान अपने बच्चों को ईसाईयों और बुत परस्तों मुशिरकों के स्कूलों पाठशालाओं में पढ़ने भेज रहे हैं जबकि मुसलमानों को चाहिए कि वह हिन्दी अंग्रेज़ी हिसाब व साइंस वगैरा की अदना (छोटी) व आला (बड़ी) तालीम के लिए भी अपने स्कूल खोलें जिनमें दुनियवी तालीम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दीनी तालीम भी हो या दीनी इस्लामी उलूम के साथ साथ ज़रूरत के लाइक दुनियवी उलूम भी पढ़ाये जायें और तालीम अगरचे दुनियवी भी हो लेकिन माहौल व तहज़ीब इस्लामी हो और गवर्नमेंट से मन्जूरशुदा निसाब की किताबें भी पढ़ाई जायें लेकिन उनमें अगर कहीं कोई बात ऐसी हो जो इस्लामी नज़रियात के ख़िलाफ़ हों तो पढ़ाने वाले उस पर तम्बीह करके बच्चों के ईमान व अकीदे को बचायें क्यूँकि ईमान हर दौलत से बड़ी दौलत है
मगर अफ़सोस कि मुसलमानों में भी हर किस्म के लोग मौजूद हैं, दौलतमन्दों और अमीरों की तादाद भी काफी है, अगर चाहते तो आसानी से दुनियवी तालीम के लिए भी अपने स्कूल खोल देते मगर वहाँ तो ईसाईयत और मुशरिकाना तहज़ीब का नशा सवार है । ख्याल रहे कि वक्त अब करीब आता मालूम हो रहा है और यह नशे जल्दी ही उतर जायेंगे । अस्ल बात यह कि जिस कौम के दिन पूरे हो चुके हों, उसे कोई समझा नहीं सकता । अभी जल्दी ही एक इस्लामी मुल्क इराक में अमरीकी ईसाईयों ने कब्जा कर लिया और यह इसलिए हुआ कि वहाँ के लोगों ने ईसाई तहज़ीब और कल्चर को अपना लिया था और मुसलमान जिस कौम की तहज़ीब अपनाता है उस कौम को उस पर हाकिम बना दिया जाता है
नमाज़ इराकी मुसलमान गले में टाई बाँधने लगे थे, इनके मदों औरतों ने इस्लामी लिबास छोड़कर ईसाइयों और अंग्रेज़ों का लिबास पहनना शुरू कर दिया था, शराब आम हो गई थी, रोज़ा बराए नाम रह गया था । आज लोग चीख़ रहे हैं कि इराक से इस्लामी हुकूमत चली गई लेकिन भाईयों चीखने से क्या फायदा सही बात यह है कि पहले इस्लाम गया है, हुकूमत बाद में। अमरीकी फौजें बहुत बाद में आईं हैं, अमरीकी तहज़ीब पहले आ गई है
📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न.151,152)
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✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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