मखलूके खुदा को सताना और दुआ तावीज कराना❓
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आज कितने ही लोग हैं जो लोगों पर जुल्म व ज़्यादती करते हैं और फिर पीरों, फकीरों के यहाँ दुआ तावीज़ात कराते हैं और मज़ारों पर मुरादें मांगते घूमते हैं और मस्जिदों में जाकर लम्बी लम्बी दुआयें मांगते हैं
कितने शौहर हैं जो बीवियों पर जुल्म ढाते और उनका ख्याल नहीं रखते उन्हें बान्दियों और नौकरानियों से बंदतर ज़िन्दगी गुज़ारने पर मजबूर कर देते हैं न उन्हें तलाक़ देते हैं और न उनका हक अदा करते हैं कितनी बीवियां हैं जो अपने शौहरों का खून पीती उनके लिए घरों को जहन्नम का नमूना बना देती हैं । सासों और नन्दों के साए से जलती हैं, कितनी सास और नन्दें हैं जो अपने घरों में आने वाली दुल्हनों के लिए जीना मुश्किल कर देती हैं शौहर बीवी के दरमियान महब्बत उन्हें कांटों तरह खटकती और कलेजे में चुभती है कितने अमीर कबीर रईस ज़मींदार व मालदार लोग हैं जो मज़दूरों का गला घोंटते, नौकरों को मारते, पीटते, झिड़कते, उनकी मज़दूरियां और तनख्वाहें रोकते और खुद ऐश करते और उनके घर वालों बीवी बच्चों की बददुआयें लेते हैं । कितने ही लोग वह हैं जो जानवरों को पालते हैं लेकिन उनकी भूक, प्यास, जाड़े, गर्मी की परवाह नहीं करते उन्हें बेरहमी से मारते पीटते हैं उनकी ताकत से ज़्यादा उनसे काम लेते और बोझ लादते हैं । ख़ास कर ज़िबह का पेशा करने वाले ज़िबह करने से पहले उन्हें भूका प्यासा यह रखते हैं और उन पर ऐसे ऐसे जुल्म करते हैं कि जिन्हें देखा नहीं जा सकता खुलासा यह कि कोई भी ज़ालिम अत्याचारी बे रहम हो जो अपने ऐश व आराम और मालदारी की ख़ातिर दूसरों को सताता और उनका खून पीता है उसकी न खुद अपनी दुआ कबूल होती है न उसके हक में दूसरों की । यह मर्द हों या औरतें, यह शौहर हों या बीवियां, यह सासें और नन्हें हों या बहुएं और भावजें, मालदार और ज़मींदार हों या हुक्काम व अधिकारी अगर यह ज़ालिम व बेरहम और अत्याचारी हैं तो उन्हें चाहिए कि यह लम्बी लम्बी दुआयें मांगने, पीरों फकीरों और मज़ारात पर चक्कर लगाने और दुआ तावीज़ कराने से पहले जिसको सताया है उससे माफ़ी मांग लें जिसका हक दबाया है । वह उसे लौटा दें और जुल्म व ज़्यादती व बेरहमी की आदत छोड़ दें फिर आयें ये मस्जिदों में दुआओं के लिए और ख़ानकाहों में मुरादें मांगने और मियां और मौलवियों के पास गन्डे तावीज़ कराने के लिए । जिस ने किसी गरीब, कमज़ोर को सताया है और जिसके पीछे किसी मज़लूम की बददुआ लगी है उसके लिए न कोई दुआ है न तावीज़ हदीस में है कि फ़रमाया रसुलुल्लाह ﷺ ने अल्लाह तआला उस पर रहम नहीं फ़रमाता जो लोगों पर रहम नहीं करता
और फ़रमाते हैं मज़लूम की बददुआ से बचा वह अल्लाह से अपना हक़ मांगता है और खुदाए तआला हक़ वाले को उसका हक अता फ़रमाता है 📚 (मिश्कात, सफहा ४३५)
📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न.149,150)
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✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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