घर वालों को तंगी और परेशानी में छोड़ कर नफ़्ल इबादत करना❓


घर वालों को तंगी और परेशानी में छोड़ कर नफ़्ल इबादत करना❓

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कुछ लोगों को देखा गया है कि वह इबादत व रियाज़त में लगे रहते हैं। इश्राक़, चाश्त, अव्वाबीन और तहज्जुद की नमाज़ों को अदा करते, तस्बीह व वज़ीफे पढ़ते हैं और उनके बीवी बच्चे या बूढ़े और मुफलिस माँ बाप रोटी के टुकड़ों के लिए मुहताज और तेरा मेरा मुँह देखते नज़र आते हैं। यह ऐसे लोगों की भूल हक है और वह नहीं जानते, बन्दगाने खुदा में से हक वालों के अदा करना भी खुदाए तआला की इबादत और उसकी खुशनूदी हासिल करने का ज़रीया है। नफ्ल इबादत में मशगूलियत अगर बीवी बच्चों और मुफलिस माँ बाप के ज़रूरी इख़राजात से रोकती हो तो पहले बीवी बच्चों की किफालत करे फिर वक़्त पाये तो नवाफ़िल में मशगूल हो। अलबत्ता पाँचों वक्त की फर्ज नमाज़ हरगिज़ किसी सूरत माफ नहीं, उसकी अदाएगी हर हाल हर एक पर निहायत लाज़िम व ज़रूरी है, ख़्वाह कैसे भी करे और कुछ भी करे और आजकल इस दौर में अगर कोई शख़्स सिर्फ फ़र्ज़ नमाज़ों को पाबन्दी के साथ बाजमाअत अदा करता हो, रमज़ान के रोजे रखता हो अगर ज़कात फर्ज हो तो ज़कात निकालता हो, हज फ़र्ज हुआ हो तो ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार हज़ कर चुका हो और हराम काम मसलन शराब, जुआ, चोरी, ज़िनाकारी, सूदखोरी, गीबत व बदकारी, खयानत व बदअहदी, सिनेमा, गाने बाजे और तमाशों वगैरह से बचता हो और हत्तल इमकान यअनी जहाँ तक हो सके सुन्नतों का पाबन्द हो और इसके साथ साथ जाइज़ पेशे के जरीए बीवी बच्चों की किफालत करता हो और ईमान व अकीदा दुरुस्त रहे तो यकीनन वह अल्लाह वाला है, अल्लाह का प्यारा है और वह अल्लाह का मुकद्दस व नेक बन्दा है। ख्वाह वह नफ्ल नमाजें और नफ़्ली इबादत अदा न कर पाता हो, वज़ीफ़ और तस्बीह, इश्राक व चाश्त व अव्वाबीन वगैरहा में मशगूल न रहता हो

हदीस पाक में है रसूलुल्लाह ने फरमाया फ़र्ज़ इबादत के बाद हलाल रोज़ी की तलाश फर्ज है

📚 ( मिश्कात शरीफ़ सफा २४२) 

और फरमाते हैं सबसे ज़्यादा उम्दा व अफ़ज़ल वह माल है जो तुम अपने घर वालों पर खर्च करो 

📚 (मिश्कात सफा १७०)

🌷 सदरुश्शरीआ हज़रत मौलाना अमजद अली अलैहिर्रहमह फरमाते हैं इतना कमाना फर्ज है जो अपने लिए और अहल व अयाल के लिए और जिन का नफका उसके जिम्मे वाजिब है उनके नफ़के के लिए और कर्ज अदा करने के लिए किफायत कर सके

📚 (बहारे शरीअत हिस्सा १६ सफा २१८)

👉 और फ़रमाते हैं कद्रे किफायत से ज़्यादा इसलिए कमाता है कि फुकरा व मसाकीन की ख़बरगीरी कर सके या करीवी रिश्तेदारों की मदद करे तो यह मुसतहब है और यह नफ्ल इबादत से अफ़ज़ल है

📚 (बहारे शरीअत हिस्सा १६ सफा २१८)

✍🏻 फिर फ़रमाते हैं जो लोग मसाजिद और ख़ानकाहों में बैठ जाते हैं और बसर औक़ात (गुज़ारे) के लिए कुछ काम नहीं करते और खुद को मुतवक्किल बताते हैं हालाँकि उनकी निगाहें इसकी मुन्तज़िर रहती हैं कि कोई हमें कुछ दे जाये, वह मुतवक्किल नहीं इससे बेहतर यह था कि वह कुछ काम करते और उससे बसर औकात यअनी गुज़ारा करते

इसी तरह आजकल बहुत से लोगों ने पीरी, मुरीदी को पेशा बना लिया है। सालाना मुरीदों में दौरा करते हैं और मुरीदों से तरह तरह की रकमें खसोटते हैं और उनमें कुछ ऐसे हैं कि झूट फरेब से भी काम लेते हैं, यह नाजइज़ है

📚 (बहारे शरीअत हिस्सा १६ सफा २१८)

📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 156,157,158)

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✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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