📖 गैर जरूरी जाहिलाना सवालात
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आजकल अवाम में गैर ज़रूरी सवालात मालूम करने का रिवाज भी आम हो गया है वह भी अमल व इस्लाह की गरज़ से नहीं बल्कि उलमा को आजिज़ करने या और किसी फ़ासिद मकसद से।एक साहब को मैंने देखा कि वह मालदार हो कर कभी कुर्बानी नहीं करते थे और मौलवी साहब से मालूम कर रहे थे हज़रते इरमाईल अलैहिस्सलाम की जगह जिबह करने के लिए जो दुम्बा लाया गया था वह नर था या मादा और उसका गोश्त किसने खाया था वहीं उन्हीं के जैसे दूसरे साहब बोले कि वह दुम्बा अन्डुआ था या ख़स्सी ?
एक साहब को नमाज़ याद नहीं थी और वुजू भी ठीक से करना नहीं जानते थे और उन्हें जो मौलाना साहब मिलते उनसे यह ज़रूर पूछते थे कि मूसा अलैहिस्सलाम की मां का क्या नाम था ? और हज़रते ख़दीजा रदियल्लाहु तआला अन्हा का निकाह किस ने पढ़ाया था ?
ग़रज़ कि इस किस्म के गैर ज़रूरी सवालात करने का माहौल बन गया है अवाम को चाहिए कि तारीख़ी बातों में न पड़ कर नमाज, रोज़ा वगैरा अहकामे शरअ सीखें और इस्लामी अकीदे मालूम करें यही चीजें अरल इल्म हैं । और जो बात कुआन व हदीस व फिक्ह से मालूम हो जाए तो ज़्यादा कुरेद और बारीकी में न पड़ें न बहस करें अगर अक्ल में न आए तो अक्ल का कुसूर जाने न कि मआ कुनि व हदीस का या फुकहाए मुजतहिदीन का
और ख्वाहम ख्वाह ज़्यादा सवालात करने की आदत अच्छी नहीं है फी ज़माना अमल करने का रिवाज बहुत कम है पूछने का ज़्यादा और अन्धा होकर बारीक राहों पर चलने में सख्त ख़तरा है
📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न.138)
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✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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