हलाल कमाने और दीनदार बनकर रहने की तरकीब
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जो शख्स हलाल कमाकर और दीनदार बनकर अल्लाह और रसुल को राज़ी करना चाहे,उसको चाहिए कि फिज़ुलखर्ची से बचे ,आज कल लोगो ने अपने इख्राजात् (खर्च) बढ़ा लिए है और बेजा शौक और अरमान पूरा करने में लगे हैं ये कभी दीनदार नहीं बन सकते
अगर आप सच्चे पक्के मुस्लमान बनना चाहे तो आमदनी बढ़ाने से ज़्यादा खर्च कम करने की सोचे क्योंकि इख्राजात की ज्यादती से आमदनी बढ़ाने की हवस पैदा होती है,और आमदनी बढ़ाने की हवस इंसान को बेरहम ज़ालिम और हरामखोर बनाती है और जिसकी आदत आमदनी से ज़्यादा खर्च करने की पड गयी है वो कभी चैन और सुकून से नहीं रह पाते है ज़िन्दगी भर परेशान रहते है और आमदनी से कम खर्च करने वालो की जिन्दगी बड़ी पुरसुकुन और बाईज़्ज़त रहती है और यही लोग वक़्त बे वक़्त दुसरो की काम भी आ जाती है
इन्ही वुजुहात के बिना पर कुराआने करीम में खुदाए तआला ने फिज़ुलखर्ची करने वालो को शैतान का भाई फरमाया और रसुलअल्लाह ﷺ ने इर्शाद फरमाया सादगी आधा ईमान है आज जदीद साइंस की इजादात् ने भी इंसान के इख्राजात और उसकी जरूरतों को बढ़ा दिया है इस पर कंट्रोल करने की ज़रूरत है ,घर ग्रह्स्ती कि ज़रुरतो में एक दर्मियानी रवैया अपनाया जाये
अफसोस कि हम आज 2-4 जोड़ी कपड़ो में ज़िन्दगी नहीं गुज़ार सकते बल्की जोड़े पर जोड़े बनाये चले जा रहे हैं । अफ्सोस है कि मज़बूत और पक्का मकान बनाकर भी चैन से नहीं रहते बल्की उनको सजाने और संवारने में लाखो-लाख रुपया उड़ाए चले जा रहे हैं
कुछ लोग शैखी खोरी की वजह से परेशान रहते है, उनकी यह आदत उनको ज़हनी सुकून हासिल नहीं होने देती उन्हें हर वक़्त यह फ़िक्र रहती है कि अगर हम ऐसा कपडा पहनकर नहीं जाएंगे या मकान नहीं बनायेगे या ऐसा खाना नहीं खायेगे और खिलायेगे तो लोग क्या कहेंगे ?
भाईयों लोगो के कहने को मत देखो बल्की अपने हाल और अपनी आमदनी को देखो, अभी आप पर कोई वक़्त पड जाए तो,यही मुँह बजाने वाले पास तक नहीं आएंगे ,क़र्ज़ तक देने के तैयार नहीं होंगे हदीस पाक में है की हुज़ूर ﷺ ने इर्शाद फरमाया दुनियाँ में ज़िन्दगी मुसाफिर पर्देसियो की तरह गुज़ारो और खुद को कब्र वालो में समझो
📕मिशकात सफह 450
यानी मुसाफिर और परदेसी जिस तरह कम से कम सामाने ज़िन्दगी के साथ सफर करता है यूँही तुम भी इस दुनिया में मुसाफिर की तरह हो
इस बयान का ये मतलब नहीं कि खुदाए तआला अगर हलाल कमाई से दे तो अच्छा खाना और पहनना नाजयज़ है ! बल्की हमारा मक़सद गैर ज़रूरी और फालतु इख्राजात से बाज़ रखना है ताकि कही आप कमाने की ज़्यादा फ़िक्र में बेईमान ,खाइन ,और हरामखोर ना बन जाए और दीनदारी की ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए इख्राजात पर काबू रखना और फिज़ुलखर्ची से बचना ज़रुरी है
और इस बारे में जायेज़ और नजायेज़ की हुदुद जानने के लिए फ़िक़्ह और तस्स्वुफ की किताबों का मुताअला करना चाहिए ख़ासकर सदरुश्शरिया हज़रत मौलाना अमजद अली साहब अलैहिर्रह़मतु वरीज़वान की किताब बहारे शरीयत' सोल्हावा हिस्सा पढ़ लेना एक मुस्लमान के लिए फि ज़माना बहोत ज़रुरी है
पढ़ने वालो की आसानी के लिए बहारें शरियत का सोलहावा हिस्साा 📗इस्लामी अख्लाक् ओ अदब के नाम से भी हिंदी में आ चुका है आजकल जो बेईमानो बेरहमी और ज़ुल्म करके कमाने वालो और पराये माल को अपना समझने वाले रिशवतखोरो की तादाद ज़्यादा बढ़ गई हैं यहाँ तक की वो लोग मुआमलात के साफ़ सुथरे हो उन्की गिनती अब ना होने के बराबर है ,इस सबकी ख़ास वजह आजकल बेजा इख्राजात और फिज़ुलखर्ची है
खुलासा ए कलाम ये है कि हरामखोरी से बचकर और दीनदार बनकर जो शख्स ज़िन्दगी गुज़ारना चाहे उसके लिए फिज़ुलखर्ची से बचना और सादा ज़िन्दगी गुज़ारना आजकल ज़रुरी है
📚(ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न.121/122/123)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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