रात को देर तक जागना और सुबह को देर से उठना


रात को देर तक जागना और सुबह को देर से उठना 

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आजकल रातो के जागने और दिन के सोने के माहोल बनता जा रहा है हालांकि, कुरान करीम की बाज़ आयात का मफ्हुम् है कि हमने रात आराम करने के लिए बनायी और दिन काम करने के लिए,इस्लामी मिजाज़् ये है कि रात को ईशा की नमाज़ पढ़ कर जल्दी सो जाओ और सुबह के जल्दी उठ जाओ । इशा कि नमाज़ के बाद गैर ज़रुरती बाते करना मकरुह् व ममनुअ है

हदीस शरीफ में है 

रसुलुल्लाह् ﷺ इशा की नमाज़ के पहले सोने और इशा कि नमाज़ बाद बात करने को नापसन्द फर्माते थे। यह हदीस् बुखारी और मुस्लिम् में भी है 

📗मिश्कात, बाब-तअज़िलुस्सलात ,फरले अव्वल, सफह 60

बाज़ मुदर्रेसिन और तल्बा को देखा गया है की वो रात को किताबे देखते है और काफी काफी रात तक किताबो और उनके हाशिये में बिज़ी रहते है यहाँ तक की सुबह फज्र की नमाज़े कज़ा कर देते है या नमाज़ पढ़ते भी है तो इस तरह की घडी देखते रहते है ,जब देखा कि २-४ मिनट् रह गए और पानी सर से ऊँचा हो गया तो उठते जल्दी जल्दी वुज़ु करते है और नमाज़् में परिंदो की तरह चोचे मार कर मुसल्ले से अलग हो जाते है 

दरअस्ल ये वो लोग है जो किताब पढ़ते हैं मगर ये नहीं जानते की इल्म क्या है ,ये तबलिसे ईब्लीस का शिकार है और शैतान ने इन्हे धोके में ले रखा है, कुछ का कुछ सुझा रखा है ऐसे ही वो वायज़ीन और मुकर्ररिन ,जलसे करवाने वाले और जल्से करने वाले,तकरीरे करवाने वाले सुनने और सुनाने वाले, इस ख़याल में ना रहे की उनके जल्से उनके नमाज़ छोड़ने के अज़ाब से नजात दिलायेंगे ,होश उड़ जाएंगे बरोज़े क़यामत नमाज़ में लापरवाही करने वालो के,और जल्दी जलदी मुनफिको की तरह नमाज़ पढ़ने वालो के चाहे वो अवाम हो या ख़ास ,मुकर्ररि हो या शायर,मुदर्रिस हो या मुफ्ती, सज्जादानशिन हो या किसी बड़े बाप के बेटे या किसी बड़ी से बड़ी खानकाह के मुजावर ,और बरोज़े कयामात जब नमाज़ो का हिसाब लिया जाएगा तब पता चलेगा कि कौन कौन कितना बड़ा खादिमे दीनऔर इस्लाम का ठेकेदार था

दौरे हाज़िर के हालात आजकल के नौजवान रातो को चैटिंग और फोन् पर बातें करने में गुज़ारते है ,या रातो को उलटी सिधी फिल्मे या गलत वेब साइट देख्ते है (यूट्यूब,फेसबुक,tiktok,like, sharechat, mussically etc) और रात भर उनके माँ बाप कोइ फ़िक्र नहीं करते की उनकी औलाद क्या कर रही है,और अगर देख भी लिया सुबह के वक़्त उनके माँ बाप ने तो ये कहते है कि अब तो सो जा सुबह हो गई है जबकि कहना तो ये था कि उठ नमाज़ पढ़ , तो जब आलिमे दीन की किताब से मुहब्बत नमाज़ ना पढ़ने के अज़ाब से नहीं बचा सकती तो ये ऐसे काम आज कल के मुसल्मानो को कैसे बचा लेंगे ? , औलाद के साथ साथ माँ बाप भी इस की गिरफ्त् में आएंगे की तुमने अपनी औलाद की तर्बियत् कैसे की जो वो नमाज़ से गाफिल रहा 

📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न.110/111/112)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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