लड़कों की शादी मै ब'जाए वलीमे के मूंढया करना (मांढ, मंढ या जो भी कहते हों आपकी ज़ुबान मै) ?
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लड़के की शादी में ज़ुफाफ़ (यानी बीवी और शोहर के जमा होने के बाद) सुबह को अपनी विसात (हैसियत) के मुताबिक़ मुसलमानों को खाना खिलाए उसे वलीमा कहते हैं। और यह "सैयद ए आलम सल्लल्लाहो तआला अलेही वसल्लम" की मुबारक सुन्नत है। ब'कसरत हदीस में इसका ज़िक्र है, सरकार ने खुद भी वलीमे किए और सहाबा'ए किराम को भी उसका हुक्म दिया। मगर आजकल काफी लोग शादी से पहले दाअवते करके खाना खिलाते हैं जिसको मंड्या (वग़ैरह) कहा जाता है, वलीमा ना करना उनकी जगह मंडिया करना यह सुन्नत के खिलाफ़ है। मगर लोग रस्मो रिवाज पर अड़े हुए हैं और अपनी ज़िद और हटधर्मी या ना वाकिफि की बुनियाद पर "रसूले करीम सल्लल्लाहु तआला अलेही वसल्लम की इस मुबारक और प्यारी सुन्नत को छोड़ देते हैं
याद रखिये इस्लाम के हर क़ानून में हज़ारों मसलिहतें हैं। मंड्या ममनूअ (मना) होने और वलीमा सुन्नत होने में भी एक बड़ी हिकमत यह है कि अगर निकाह से पहले ही खाना खिला दिया तो हो सकता है कि किसी वजह से निकाह ना होने पाए, और अक्सर ऐसा हो भी जाता है, तो इस सूरत में वह निकाह से पहले के तमाम अख़राजात बे'मक़सद और बोझ बन कर रह जाते हैं
📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 84)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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