क्या पीर के लिए सय्यद होना ज़रूरी है ❓
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आजकल यह प्रोपेगंडा भी किया जाता है के मुरीद करने का हक़ सिर्फ़ सय्यदों को है ऐसा प्रोपेगंडा करने वालों में ज़्यादातर वह लोग हैं जो सय्यद ना होकर खुद को आले रसूल और सय्यद कहलाते हैं। सादाते किराम से मोहब्बत और उनकी ताअ'ज़ीम अहले इमान की पहचान है। और वो लोग निहायत बदबख्त और बदनसीब हैं जिनको आले रसूल से मोहब्बत ना हो, लेकिन पीर के लिए सय्यद होना ज़रूरी नहीं। कुरान ए करीम में है" तर्जुमा: तुम मै अल्लाह के हुज़ूर (नज़दीक) शराफ़त और इज़्ज़त वाले तक़वा और परहेज़गारी करने वाले हैं @@@ हज़रत सय्यदना गौसे समदानी शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी खुद नजीबुत तरफैन हसनी हुसैनी सैयद हैं, लेकिन हुज़ूर (ग़ौसे पाक) के पीर'ओ मुर्शिद शैख़ अबू सईद मख़ज़ूमी और उनके शैख़ अबुल हसन हिकारी, और उनके मुर्शिद शेख अबुल'फ़लाह तरतूसी, यूं ही सिलसिला ब'सिलसिला शेख अब्दुल वाहिद तमीमी, शैख़ अबू बकर शिब्ली, शैख़ जुनैद'ए बगदादी, शैख़ मारूफ़ करखी (रदियल्लाहु अन्हुम) मैं से कोई भी सय्यद और आले रसूल नहीं।
सुल्तान'उल हिंद ख्वाजा मोइनुद्दीन अलैहिर रहमह" के पीर ओ मुर्शिद सय्यदना ख्वाजा उस्मान हारूनी भी सय्यद नहीं थे, फिर भी यह कहना कि पीर के लिए सय्यद होना ज़रूरी है तो यह बहुत बड़ी जहालत और हिमाक़त है
आला हज़रत फरमाते हैं पीर के लिए सय्यद होने की शर्त ठहराना तमाम सलासिल को बातिल करना है, सिलसिला ए आलिया क़ादरिया में सय्यदना इमाम अली रज़ा और हुज़ूर गौसे आज़म के दरमियान जितने हज़रात हैं सादात'ए किराम मै से नहीं,और सिलसिला'ए आलिया चिश्तिया मै तो सय्यदना मौला अली के बाद ही इमामे हसन बसरी हैं, जो ना सय्यद हैं ना क़ुरैशी और ना वो अरबी, और सिलसिला'ए आलिया नक़्शबन्दिया का ख़ास आगाज़ ही, सय्यदना सिद्दीक़'ए अकबर रदियल्लाहु अन्हु से है
(📖 फतावा रिज़विया, जिल्द 9, सफ़्हा 114, मतबूआ बीसलपुर)
और हुज़ूरﷺ के सहाबा जिनकी तादाद एक लाख से भी ज़्यादा है, उनमें 2, 3, को छोड़कर कोई सय्यद और आले रसूल नहीं, लेकिन उनके मरतबे को क़यामत तक कोई नहीं पहुंच सकता।
📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 89,90)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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