क्या शौहर के लिए बीवी को मै हाथ लगाने से पहले महर मुआफ़ करना ज़रूरी है ?
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काफी लोग यह ख्याल करते हैं कि शौहर के लिए ज़रूरी है के निकाह के बाद पहली मुलाक़ात मै अपनी बीवी से पहले महर मुआफ़ कराए फिर उसके जिस्म को हाथ लगाए.... यह एक ग़लत ख्याल है इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं। महर मुआफ़ कराने की कोई ज़रूरत नहीं, आजकल जो महर राइज है, उसे ग़ैर मुअज्जल (उधार) कहते हैं, जो या तो तलाक़ देने पर या फिर दोनों में से किसी एक की मौत पर देना वाजिब होता है उससे पहले देना वाजिब नहीं... हां अगर पहले दे दे तो कोई हर्ज नहीं बल्कि निहायत उम्दा बात है, मुआफ़ कराने की कोई ज़रूरत नहीं और महर मुआफ़ कराने के लिए नहीं बांधा जाता है, अब दे या फिर दे वह देने के लिए है, मुआफ़ कराने के लिए नहीं... हां अगर महर'ए मुअज्जल (नक़द) हो यानी निकाह के वक्त नक़द देना तय कर लिया गया हो तो बीवी को इख़्तियार है कि वह अगर चाहे तो बगैर मेहर वसूल किए खुद को उसके क़ाबू में ना दे और उसको हाथ ना लगाने दे। और चाहे तो बगैर महर लिए भी उसको यह सब करने दे माफ कराने का यहां भी कोई मतलब नहीं
📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 78,79)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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