बेवह के निकाह को बुरा समझना कैसा



बेवाह (जिसका शौहर इंतिक़ाल कर जाये) उनके निकाह को बुरा समझना ?

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 बेवाह औरत के लिए इस्लाम में निकाह जायज़ है। और लोगों की बदनियति, बद निगाही, और फासिद इरादों और बद कारी से बचने की नियत से हो तो बिला शुबहा बाइसे अजरो सवाब भी है, और निकाह करने पर बिना वजह किसी औरत पर लाअन और ताअन करना, उसको बुरा भला कहना या बेवाह औरत को मनहूस ख्याल करना सब गुनाह है।

दरअसल इस सिलसिले में दो किस्म के लोग पाए जाते हैं। एक तो वह जो बेवाह औरतों के निकाह को फ़र्ज़'ए क़तई (सख़्त ज़रूरी) समझते हैं और जबरन उनके निकाह कराते हैं और ना करने को हराम ख़्याल करते हैं, यह वह लोग हैं जो गुमराह और बद'दीन हो चुके हैं। दूसरे वो लोग हैं जो उस निकाह को बुरा जानते हैं और निकाह करने वाली को लानत और ताअने करते हैं, यह लोग भी सख्त गलती पर हैं।

आजकल के माहौल में बदकारों, ज़िनाकारों, अय्याशो, होटलों क्लब घरों, रंडीखानो में अय्याशी और ज़िनाकारी करने वाले मर्दों और औरतों की कसरत के बावजूद उन्हें कोई कुछ नहीं कहता, बल्कि वह नेता, काइद और बड़े आदमी कहलाए जा रहे हैं, और कोई बेवाह औरत निकाह करे या अधेड़ उम्र का मर्द या कोई मर्द एक से ज्यादा निकाह करे तो उसको लोग बुरा जानते हैं, और मलामत करते हैं, यह सब जिहालत और इस्लाम से दूरी के नताइज है। निकाह'ए शरइ (यानि वो निकाह जो शरीअत मै जाइज़ है) जितने ज़्यादा हो उतना बेहतर, क्योंकि निकाह बदकारी को मिटाता है, ज़िनाकारी और ज़िनाकारों के रास्ते बंद करता है। आजकल लेने देने लंबी-लंबी बारातो, जहेज़ की ज्यादती और रुसूम ओ रिवाज की कसरत से निकाह, शादियां मुश्किल हो गई है, इसलिए बदकारी और ज़िनाकारी बढ़ रही है।

नोट:- निकाह को आसान करो ताकि बदकारी मिट जाए। जहेज़ लेना और देना बंद करो।


📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 84,85)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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