क्या औरत फ़ातिहा नहीं पढ़ सकती ❓
फ़ातिहा और ईसाले सवाब जिस तरह मर्दों के लिए जायज़ है उसी तरह बिलाशक औरत के लिए भी जायज़ है, लेकिन बाअज़ जगह बाअज़ औरतें बिला वजह परेशान होती है और फ़ातिहा के लिए बच्चों को इधर उधर दौड़ाती है, हालांकि वह खुद भी फ़ातिया पढ़ सकती हैं.. कम से कम अल्हम्द शरीफ और क़ुलहुवल्लाह शरीफ अक्सर औरतों को याद होती है इसको पढ़कर खुदा-ए-तआला से दुआ करें कि--ऐ अल्लाह इसका सवाब (फुलाँ-फुलाँ और फुलाँ जिसको सवाब पहुंचाना हो उसका नाम लेकर कहें) उसकी रूह को अता फरमा दे। यह फातिहा हो गई और बिलकुल दुरुस्त और सही हो गई बाअज़ औरतें और लड़कियां कुछ जाहिल मर्दों से ज़्यादा पढ़ी-लिखी और नेक पारसा होती है यह अगर उन जाहिलों के बजाय खुद ही कुरआन पढ़कर इसाले सवाब करें तो बेहतर है। कुछ औरतें किसी बुज़ुर्ग की फातिहा दिलाने के लिए खाना वगैरा कोने में रख कर थोड़ी देर में उठा लेती हैं और कहती हैं कि उन्होंने अपनी फातिहा खुद ही पढ़ ली इन सब तोहमात और जाहिलाना बातों के बजाय उन्हें कुरआन की जो भी आयत और सूरत याद हो उसको पढ़कर इसाले सवाब कर दें तो यही बेहतर है और यह बाकायदा फातिहा है।
📚 (ग़लत फहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 61,62)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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