क़ुरआन पढ़ने मै सिर्फ़ होंठ हिलाना, और आवाज़ न निकालना ?


क़ुरआन पढ़ने मै सिर्फ़ होंठ हिलाना, और आवाज़ न निकालना ?

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कुछ लोग क़ुरआन की तिलावत और नमाज़ या नमाज़ के बाहर कुछ पढ़ते हैं तो सिर्फ होंट हिलाते हैं, और आवाज़ बिल्कुल नहीं निकालते उनका यह पढ़ना पढ़ना नहीं है, और इस तरह पढ़ने से नमाज़ नहीं होगी, और इस तरह क़ुरआन की तिलावत की तो तिलावत का सवाब नहीं पाएंगे। आहिस्ता पढ़ने का मतलब यह है कि कम से कम इतनी आवाज़ ज़रूर निकले कि कोई रुकावट ना हो तो खुद सुन ले। सिर्फ होंट हिलाना और आवाज़ का बिल्कुल ना निकलना पढ़ना नहीं है। इस मसअले का खास ध्यान रखना चाहिए

📚 फ़तावा आलमगीरी मिस्'री जिल्द अव्वल, सफ़्हा 65, 

📚बहारे शरीअत, जिल्द 3, सफ़्हा 69

📚 (ग़लत फेहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 46,47)


✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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