15 शाबान (शबे बरात) के जरुरी व अहम मसाइल



मदरसा दारे अरकम मोहम्मदिया

बिइस्मिहीतआला 

15 शाबान (शबे बरात) का पैगाम कौमे मुस्लिम के नाम 

मुबारक रात

 15 शाबान की रात बड़ी मुबारक और बरकत वाली रात है कि जिसमें अल्लाह तआला की खास रहमतों का नुज़ूल होता है और अल्लाह तआला अपनी बख्शिश व रहमत उन बंदोँ को अता फरमाता है जो उसकी बख्शिश के तलब गार होते हैं लेकिन इस रात में लोग तरह-तरह की खुराफात व रस्म व रिवाज में मुब्तला होकर अपने दफ्तर आमाल को गुनाहों से पुर करते नजर आते हैं हालांकि यह रात गुनाहों को बख्शवाने की रात है शफाअत की रात है जैसा कि उसके नाम से जाहिर व बाहिर है, 

शफाअत की रात

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मरवी है कि आपने तेरहवीं शाबान की रात अल्लाह ताला से अपनी उम्मत की शफाअत की दुआ मांगी अल्लाह तआला ने एक तिहाई उम्मत की शफाअत मरहमत फरमाई और आपने चौधवी की रात फिर उम्मत की शफाअत की दुआ की तो अल्लाह तआला ने दो तिहाई उम्मत की शफाअत की इजाजत मरहमत फरमाई और आपने 15 वी की रात अपनी उम्मत की शफाअत की दरखास्त की तो अल्लाह तआला ने तमाम उम्मत की शफाअत मंज़ूर फरमाई मगर वह शख्स जो रहमते इलाही से ऊंट की तरह दूर भाग गया और गुनाहों पर इसरार करके खुद ही दूर से दूर तर होता गया (इस शफाअत से महरूम रहेगा)

मुकाशिफतुल कुलूब सफा नंबर 640

बख्शिश की रात

 इमाम अहमद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया अल्लाह तआला 15 शाबान की रात अपने बंदों पर जुहूर फरमाता है और 2 शख्सो के अलावा दुनिया में रहने वाले तमाम इंसानों को बक्श देता है उन दोनों में से एक मुशरिक और दूसरा कीनह परवर( किसी के लिए बिला बजह दिल में अदावत रखने वाला) 

मुकाशिफतुल कुलूब सफा नंबर 641

 आजादी व छुटकारे की रात

हजरत आयशा रजि अल्लाह तआला अन्हा फरआती हैं एक मर्तबा यह रात( 15वीं शाबान की रात) मेरी बारी की रात थी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ लाए और मेरे साथ लिहाज में लेट गए रात को मैं बेदार हुई तो मैंने आपको ना पाया मैं सरकार को तलाश करते हुए अपने घर से निकली जब मैं मस्जिद से गुजरी तो मेरा पांव आप पर पड़ा आप दुआ फरमा रहे थे फिर आपने सर उठाया तो मैंने अर्ज कि मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान हो आप यहां हैं और मैं वहां थी आपने फरमाया ऐ हमीरा तुम नहीं जानती कि 15 शाबान की रात है इस रात में अल्लाह तआला बनू कल्ब के रेबड़ों के बालों के बराबर लोगों को आग से आजाद फरआता है मगर कुछ आदमी इस रात भी महरुम रहते हैं शराब खोर, वालीदैन का ना फरमान, आदी ज़ानी, सितार (एक किस्म का एक बाजा) और रुबाब (एक किस्म की सारंगी) बजाने वाला, चुगलखोर, और एक रिवायत में रुबाब बजाने वाले की जगह मुसव्विर यानी तस्वीर बनाने वाला का लफ्ज़ है 

मुकाशिफतुल कुलूब सफा नंबर 642

तकदीर की रात

इसे किस्मत और तकदीर की रात का नाम भी दिया गया है क्योंकि अता बिन यसार से मरवी है कि जब शाबान की 15वीं शब आती है तो मलकुल मौत को हर उस शख्स का नाम लिखवा दिया जाता है जो इस शाबान से आइंदा शाबान तक मरने वाला हो ता है आदमी पौधे लगाता है औरतों से निकाह करता है इमारत बनाता है हालांकि उसका नाम मुर्दों में लिखा होता है और मलकुल मौत इस इंतजार में होता है कि उसे कब हुक्म मिले और वह उसकी रूह कब्ज करे

 मुकाशिफतुल कुलूब सफा नंबर 642


सियामे शबे बरात के फज़ाइल


 हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जो शख्स शाबान की 15वीं तारीख को रोजा रखेगा उसे जहन्नम की आग ना छुएगी 


नुज़हतुल मजालिस सफा नंबर 156 अरबी


रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो शाबान के महीने में एक रोजा रखे उसके लिए जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं 

मुनीरुल ईमान फी फज़ाइले शाबान सफा नंबर 39

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं शाबान मेरा महीना है इसमें बंदों के आमाल अल्लाह तआला की बारगाह में पेश किए जाते हैं जो मुसलमान इस महीने में तीन रोजे रखे और इफ्तार के वक्त मुझ पर तीन बार दुरूद शरीफ पढ़े उसके गुनाह बख्श दिए जाएंगे और उसकी रोजी में बरकत होगी और उसको बरोज़े कियामत अल्लाह तआला जन्नत की ऊंटनी पर सवार करेगा और वह उस पर बैठकर जन्नत में जायेगा


 मुनीर उल ईमान की फजाइले शाबान सफा नंबर 40 


शबे बरात के नवाफिल के फजाइल

 एक सलाम के साथ 8 रकात नमाज नफल पढ़े इस तौर पर कि हर 2 रकात पर कादा में अत्तहियात दरूद पाक और दुआ पढ़ने के बाद सलाम ना फेरे बल्कि खड़ा हो जाए और सना पढ़कर तीसरी रकात व चौथी रकात पढ़ने के बाद पहले कादा की तरह दूसरा कादा करे और अत्तहिय्यात दरूद पाक और दुआ पढ़े और फिर सलाम ना फेरे पांचवीं रकात के लिए खड़ा हो जाए यूं ही हर 2 रकात पर कादा करते हुए 8 रकात पूरी करे और हर रकात में सूरह फातिहा के बाद 11 बार कुल हुवल्लाहु यानी पूरी सूरह इखलास शरीफ पढ़े और 8 रकात पूरी करके सलाम फेरे और सलाम फेरने के बाद उस नमाज का सवाब हजरत फातिमा जहरा रजियल्लाह तआला अन्हा की रूह को नजर करे सैयदा फातिमा फरमाती हैं जो कोई मुझे इस नमाज का सवाब पहुंचाए मैं उसकी शफाअत के बगैर जन्नत में कदम ना रखूंगी 

मुनीरुल ईमान फी फजाइले शाबान सफा नंबर 42 , 43 

जो शख्स 4 रकात नफिल नमाज शबे बरात में पढ़े और हर रकात में अल हम्द शरीफ के बाद कुल हुवल्लाहु शरीफ 3 बार पढ़े इंशा अल्लाह तआला अल्लाह उसको एक हज और उमरा का सवाब अता फरमाए गा

 मुनीरुल ईमान की फजाइले शाबान सफा नंबर 83

 जो शख्स शाबान की 14 तारीख को सूरज डूबने के वक्त 40 बार ला हौल वला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीयिल अज़ीम पढ़ेगा तो इंशा अल्लाह तआला आफतों और मुसीबतों से साल भर तक महफूज़ रहेगा 

मुनीरुल ईमान

फजाइले गुस्ल दर शबे बरात

 हुजूर फरमाते हैं जो इबादत की नियत से गुस्ल करे तो गुस्ल के पानी के हर कतरे के बदले उसके नामए आमाल में 700 रकात नफल नमाज का सवाब लिखा जाएगा (गुस्ल में बेरी के 7 पत्तों को पानी में जोश दे ले फिर गुस्ल करें तो ज्यादा बेहतर है कि पूरे साल जादू के असर से बचे रहेंगे) 

इस्लामी जिंदगी

गुजारिश हर एक मुसलमान भाई से मेरी यह अपील व गुजारिश है कि वह 14 शाबान को अपने मुसलमान भाइयों के हुकूक को माफ कर दे और उनसे अपने हुकूक माफ करा लें ताकि हुकूकुल इबाद के जिम्मा से फारिग हो जाए कि जब हमारे आमाल रब की बारगाह में पेश किए जाएं तो हम पर किसी का हक ना हो यह हमारे लिए खुशी की बात है 

नोट यह नफल नमाज़ें और नफल रोजे उन्ही हजरात के लिए मुनासिब हैं कि जिन की फर्ज नमाज़ें और रोजे पूरे हो जिनकी फर्ज नमाज़ें और रोजे पूरे ना हो उनके लिए जरूरी है कि वह अपनी फर्ज नमाज और फर्ज रोजे पूरे करें

 इल्तिमास- अरज़ गुज़ार यह हूँ कि कारिईन हजरात अगर किसी खामी को पाएं तो मुत्तला फरमा कर शुक्रिया का मौका अता फरमाऐ नीज़ पढ़ने के बाद बनियते सदकाए जारिया दूसरों तक पहुंचाने की जहमत गवारा करें 

तालिबे दुआ - मौलाना मुहम्मद साजिद चिश्ती शाहजहांपुरी खादिम मदरसा दारे अरकम मुहम्मदिया मीरगंज बरेली शरीफ

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