चलते पानी में पेशाब करना
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दरिया , नहर , राजबाह , खाल , या आबशार वग़ैरह को भी निजासत से आलूदा नहीं करना चाहिए क्योंकि इंसान और जानवर उस से फायदा उठाते हैं
अब तो काफिरों ने भी ज़िन्दगी में पहली बार अक़्ल की बात कर ही दी है कि गंगा के अन्दर आलूदा पानी डालने से मना कर दिया है और इशनान करने वालों को भी वहां हाजत करने से रोक दिया गया है
उस पर मज़ीद यह कि पानी में रहने वाली तमाम आबी मख़लूक़ हमेशा पानी की मुख़ालिफ सिम्त में चलती हैं इस लिए हमारे रसूल ए पाक ने हमें चलते पानी में पेशाब करने से मना फरमाया है ताकि उस पानी में मोजूद जरासीम उस पेशाब के ज़रिये जिस्म के अन्दर ना चले जाएँ फिर यह खतरनाक जरासीम तोलीदी निज़ाम , गुरदों , और मसानों की मुख़ालिफ बीमारियों का ज़रिया बन सकते हैं
सरे राह सायादार या फलदार दरख़्त के नीचे पेशाब करना कैसा
लोगों की गुज़रगाहों (रास्ता) में भी रफ ए हाजत ना की जाए ताकि अन्धेर सवेर राहगीरों के पैर और कपड़े आलूदा ना हों इसी तरह सायादार दरख़्त (पेड़) भी लोगों के आराम व सुकून हासिल करने का मुक़ाम होता है वहां भी रफ ए हाजत के लिए ना बैठा जाए फल दार दरख़्त के साय में भी लोग बैठते हैं और उसके फल भी नीचे गिरते हैं वो फल अगर गन्दगी में गिरेंगे तो लोगों के काम के नहीं रहेंगे इस लिए वहां भी रफ ए हाजत ना की जाए (यानी पाखाना पेशाब ना किया जाए)
हवा के रुख़ पेशाब करना कैसा
हवा के रुख़ भी पेशाब करने से मना फरमा दिया गया है इस तरह हवा दबाओ की वजह से पेशाब उड़ कर अपने ही चेहरे और कपड़ों पर गिरेगा फिर उस आलूदगी से मर्ज़़ों की इब्तिदा होगी इस लिए ऐसी जगह का इन्तिख़ाब किया जाए जहाँ हवा का रुख़ भी ना बनता हो
📘 इबादत और जदीद साइंस सफह 25
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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