मस्जिद में अवाज़ वाले पंखे लगाना कैसा


 मस्जिद मै आवाज़ करने वाले कूलरों और पंखों का मसला ?

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आजकल कितने लोग हैं जो मस्जिदों में आते हैं तो उन्हें नमाज़ से ज़्यादा अपने आराम चैन और सुकून गर्मी और ठंड की फिक्र रहती है अपनी दुकानों मकानों खेतों और खलियानों,, काम-धंधों में बड़ी-बड़ी परेशानियां उठा लेने वाले मशक्कत झेल लेने वाले जब मस्जिदों में दस-पंद्रह मिनट के लिए नमाज़ पढ़ने आते हैं और ज़रा सी परेशानी हो जाए, थोड़ी सी गर्मी या ठंडक लग जाए तो बौखला जाते हैं, गोया के आज लोगों ने मस्जिदों को आरामगाह और मक़ामे ऐश-ओ-इशरत समझ लिया है। जहां तक शरीयते इस्लामिया ने इजाज़त दी है वहां तक आराम उठाने से रोका तो नहीं जा सकता,,, लेकिन बाअज़ जगह यह देख कर सख्त तकलीफ होती है कि मस्जिदों को आवाज़ करने वाले बिजली के पंखे, शोर मचाने वाले कूलरों से सजा देते हैं, और जब वह सारे पंखे और कूलर चलते हैं तो मस्जिद में एक शोर और हंगामा होता है जो सिर्फ खुशूअ और ख़ुज़ूअ के मुनाफ़ि नहीं बल्कि बसा औक़ात इमाम की किराअत ओ तकबीरात तक साफ सुनाई नहीं देती, या इमाम को पंखे और कूलर की वजह से चीख़ कर किराअत ओ तकबीर की आवाज़ निकालनी पड़ती है। और बाअज़ जगह तो यह भी देखा गया है कि मस्जिदों में अपने ऐशो-आराम की ख़ातिर भारी आवाज़ वाले जनरेटर तक रख दिए जाते हैं जो सरासर आदाबे मस्जिद के मुनाफ़ि हैं। जहां तक बर्क़ी (पंखुड़ी वाले) पंखो और कूलरों का सवाल है तो इब्तिदाअन (शुरू मै) अकाबिरे ओलामा ने उनको मस्जिद में लगाने को मुतलक़न ममनूअ और मकरूह फरमाया था

📖 जैसा के फतावा रज़विया जिल्द 6, सफ़्हा नंबर 384 पर खुद "आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत मौलाना इमाम अहमद रज़ा खान साहब अलैहिर्रहमा" के क़लम से उसकी तसरीह मौजूद है। अब बाद में जदीद तहक़ीक़ात और इब्तिलाए आम की बिना पर उनकी इजाज़त दी गई, लेकिन आवाज़ करने वाले शोर मचाकर मस्जिदों में एक हंगामा खड़ा कर देने वाले कूलर और पंखों को लगाना आदाबे मस्जिद और खुज़ूअ और खुशूअ के यक़ीनन मुनाफ़ि है, उनकी इजाज़त हरगिज़ नहीं दी जा सकती। निहायत हल्की आवाज़ वाले हस्बे ज़रूरत पंखो ही से काम चलाया जाए कूलरों से मस्जिदों को बचा लेना ही अच्छा है क्योंकि उसमें आमतौर पर आवाज़ ज़्यादा होती है, ना के दर्जनों पंखे और कूलर लगाकर मस्जिदों में शोर मचाया जाए

भाइयों ख़ुदा-ए-तआला का ख़ौफ़ रखे ख़ाना ए ख़ुदा को ऐश ओ इशरत का मुक़ाम ना बनाओ, वह नमाज़ और इबादत और तिलावते क़ुरआन के लिए है, जिस्म परवरी के लिए नहीं नफ़्स को मारने के लिए है, नफ़्स को पालने के लिए नहीं। मस्जिदों में आवाज़ करने वाले बर्क़ी (पंखुड़ियों वाले) पंखों का हुक्म बयान फरमाते हुए "आला हज़रत रदियल्लाहु ताला अनहु फरमाते हैं,,,बेशक मस्जिदों में ऐसी चीज़ का इहदास ममनूअ बल्कि ऐसी जगह नमाज़ पढ़ना मकरूह है

📖 (फ़तावा रिज़विया, जिल्द 6, सफ़्हा 386)

उसी जगह आलाहज़रत ने दुर्रे मुख़्तार की इबारत भी नक़ल फरमाई है" तर्जुमा:- अगर खाना मौजूद हो और उसकी तरफ रग़बत (दिल चाहना) और ख्वाहिश हो तो ऐसे वक्त में नमाज़ पढ़ना मकरूह है, ऐसे ही हर वह चीज़ जो नमाज़ की तरफ से दिल को फेरे और खुशू में खलल डालें। मज़ीद फरमाते हैं, (चक्की के पास नमाज़ मकरूह है) 📖 रद्दुल मुख़्तार में है: (शायद उसकी वजह यह है कि चक्की की आवाज़ दिल को नमाज़ से हटाती है) यूँही वह पंखे जो ख़राब और पुराने हो जाने की वजह से आवाज़ करने लगते हैं उन को दुरुस्त करा लेना चाहिए या मस्जिद से हटा देना चाहिए

📚 (ग़लत फेहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 53,54)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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