मर्द और औरत के एतिकाफ में क्या फ़र्क़ है ?


 मर्द और औरत के एतिकाफ मै क्या फ़र्क़ है ?

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मसअला:- मर्द के एतिकाफ के लिए मस्जिद ज़रूरी है.. और औरत अपने घर की उस जगह में एतिकाफ करें जो जगह उसने नमाज़ के लिए मुक़र्रर की हो। (हिदाया रद्दल मुख्तार और बहारे शरीयत वगैरह) मसअला:- मुअ'तकिफ़ "यानी एतिकाफ करने वाला" को मस्जिद से बगैर उज़्र निकलना हराम है, अगर निकला तो एतिकाफ टूट जाएगा चाहे भूल कर ही निकला हो जब भी। यूं ही औरत अगर अपने एतिकाफ की जगह से निकली तो एतिकाफ जाता रहा चाहे घर ही में रहे। (आलमगीरी और रद्दल मुख्तार) और मस्जिद से निकलने के दो उज़्र हैं एक "तब'ई" दूसरा "शरई" तब'ई उज़्र यह है जैसे:- पाखाना पेशाब इस्तिंजा फ़र्ज़ ए गुस्ल वुज़ू (जब के गुस्ल और वुज़ू की जगह मस्जिद में ना बनी हो मस्जिद में बड़ा होज़ न हो) "शरई उज़्र" यह है जैसे:- ईद या जुमे की नमाज़ के लिए जाना। अगर एतिकाफ वाली मस्जिद में जमाअत ना होती हो तो जमाअत के लिए भी जा सकता है। इन उज़रों के सिवा किसी और वजह से अगर थोड़ी देर के लिए भी एतिकाफ की जगह से बाहर निकला तो एतिकाफ जाता रहा, "अगरचे भूल कर ही निकला हो"। मसअला: मुअ'तक़िफ़ रातो दिन मस्जिद ही में रहे वही खाए-पीए सोए इन कामों के लिए मस्जिद से बाहर होगा तो एतिकाफ टूट जाएगा। (दुर्रे मुख्तार हिदाया बगैरा) मसअला: मुअतकिफ़ के सिवा और किसी को मस्जिद में खाने पीने सोने की इजाज़त नहीं है, और अगर कोई दूसरा यह काम (खाना पीना) करना चाहे तो एतिकाफ की नियत करके मस्जिद में जाए और नमाज़ पढ़े या जिक्र ए इलाही करें फिर यह काम कर सकता है,, मगर खाने-पीने में यह एहतियात लाज़िम है की मस्जिद आलूदह (गन्दी) ना हो। (रद्दुल मुख़्तार ओ बहारे शरीअत वग़ैरह) मुअतकिफ़ को अपनी ज़रूरत या बाल बच्चों की ज़रूरत से मस्जिद में खरीदना या बेचना जायज़ है जबकि वह चीज़ मस्जिद में ना हो। या हो तो थोड़ी हो कि जगह घेर ले। अगर यह ख़रीद-फरोख्त तिजारत की नियत से हो तो नाजायज़ है,, चाहे वह चीज़ मस्जिद में ना हो जब भी। (दुर्रे मुख्तार और बहारे शरीयत बगैरा) मसअला: मुअतकिफ़ न बात करे न चुप रहे, बल्कि क़ुरआन शरीफ की तिलावत, हदीस की किराअत, और दुरूद शरीफ की कसरत करे, और इल्मे दीन का दरसो तदरीस करे,, अम्बिया ओ ओलिया ओ सालिहीन के हालात पढ़े, या दीनी बातें लिखे। (दुर्रे मुख्तार) मसअला: अगर नफ़ल एतिकाफ तोड़ दे तो उसकी क़ज़ा नहीं,, और सुन्नते मुअक्किदह एतिकाफ अगर तोड़ा तो जिस दिन तोड़ा तो फक़त उस 1 दिन की क़ज़ा करे.. पूरे दिनों की क़ज़ा वाजिब नहीं.. और मन्नत का एतिकाफ तोड़ा तो अगर किसी मुकर्रर महीने की मन्नत थी तो बाकी दिनों की क़ज़ा करे वरना अगर अलल इत्तिसाल वाजिब हुआ था तो सिरे से फिर से एतिकाफ करे, और अगर अलल इत्तिसाल वाजिब न था तो बाक़ी का एतिकाफ करे। मसअला: एतिकाफ जिस वजह से भी टूटे चाहे क़सदन या बिला क़स्द (जानबूझकर या धोखे से) बहरहाल क़ज़ा वाजिब है।📖 (रद्दुल मुख़्तार वग़ैरह)

📚 (क़ानून-ए-शरीअत, हिस्सा 1 सफ़्हा न. 192 मकतबा ए क़ादरिया, पुराना एडिशन)

✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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