सवाल
हैज़ (M.C) व निफ़ास (बच्चा पैदा होने के बाद ख़ून आना) वाली औरत गले में तावीज़ पहन सकती है या नहीं
अल जवाब
पहन सकती है, कोई हर्ज नहीं जबके गिलाफ़ (क़वर) में हो, चाहे जुनुबी हो (यानी जिसपर ग़ुसल फ़र्ज़ हो) या हैज (यानी M.C) व निफ़ास वाली औरत हो,
📗 रद्दुल मोहतार जिल्द 9, सफ़ह 523, किताबुल हज़र वल इबाहत)
और बहारे शरिअत में है,
जुनुब (यानी जिसपर ग़ुसल फ़र्ज़ हो) व हाइज़ (यानी जिसे MC हो रही हो) व नफ़्सा (यानी जो निफ़ास वाली हो) भी तावीज़ात को गले में पहन सकते हैं, बाज़ू पर बांध सकते हैं, जबकि ग़िलाफ़ (यानी क़वर) में हों,
📚 बहारे शरिअत जिल्द 3, सफ़ह 420)
हां वह तावीज़ात जिनमें कलिमाते कुफ़्रिया और नाजाइज़ अल्फ़ाज़ मज़कूर हों जैसा के ज़माना ए जाहिलियत में किए जाते थे, तो उनका पहनना नजाइज़ व हराम है, सिर्फ़ उन्हीं तावीज़ात का पहनना जाइज़ है जिसमें आयाते क़ुरआनिया और अस्मा ए इलाहिया (यानी अल्लाह तआला के नाम) वग़ैरह हों,
📚 रद्दुल मोहतार जिल्द 9, किताबुल हज़र वल इबाहत फ़िल्लिबास सफ़ह 523)
और हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं,
गले में तावीज़ लटकाना जाइज़ है जबकि वह तावीज़ जाइज़ हो, यानी आयाते क़ुरआनिया या अस्मा ए इलाहीया या अदईया (यानी दुआओं) से तावीज़ किया जाए और बाज़ हदीसों में जो मुमानअत आई है, उससे मुराद वह तावीज़ात हैं जो नाजाइज अल्फ़ाज़ पर मुस्तमिल हों जो ज़माना ए जाहिलियत में किए जाते थे, इस तरह तावीज़ात और आयात व आहादीस व अदईया को रक़ाबी मैं लिखकर मरीज़ को ब नियते शिफ़ा पिलाना भी जाइज़ है,
📚 बहारे शरिअत जिल्द 3 सफ़ह 419)
हदीस शरीफ़ में है,
हज़रत आयशा रज़िअल्लाहू तआला अन्हा ने फ़रमाया के नबी करीम सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने हुक्म फ़रमाया है कि हम नज़रे बद के लिए तावीज़ करवाएं,
📚 बुख़ारी शरीफ़ किताबुल तिब्ब, बाब रक़यतुल एन, जिल्द 2 सफ़ह 854)
और हजरत औफ़ बिन मालिक असजई रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने फ़रमाया के हम लोग ज़माना ए जाहिलियत में झाड़-फूंक करते थे ( इस्लाम लाने के बाद) हमने अर्ज़ किया उन मंत्रों की बाबत आप क्या फ़रमाते हैं,
हुज़ूर सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम ने फ़रमाया आपने मंत्र मुझे सुनाओ मंत्रों में कोई हर्ज नहीं, जब तक के उनमे शिर्क ना हो,
📔 मुस्लिम,
📘 अनवारुल हदीस सफ़ह 224)
अल इन्तिबाह
आजकल बहुत से लोग खासकर औरतें जाहिल काफ़िर और सिफ़्ली इलम करने वाले और देवी देवताओं की पूजा करने वाले साधु संत के पास दुआ और तावीज़ के लिए जाते हैं, जिनके मंत्र व तावीज़ में जिन्न व शायातीन के नाम होते हैं, और शिर्किया व कुफ्रिया कलिमात होते हैं और ऐसे मंत्र भी होते हैं जिनका माना बमुश्किल मालूम होता है जिसे आम आदमी समझ भी नहीं सकते, लिहाज़ा उनसे दुआ व तावीज़ और मंत्र वगैरह करवाना हराम व नाजाइज़ है और उनसे बचना ज़रूरी है,
📘 औरतों के जदीद और अहम मसाइल सफ़ह 48)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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