ईदगाह मे नमाज़े जनाज़ा पढ़ने का मसअला ?
मस्जिद में जनाज़े की नमाज़ पढ़ना मकरूह और नाजायज़ है। हदीस शरीफ में है
عن ابي هريره قال قال رسول الله صلى الله تعالى عليه و سلم من صلى على جنازه في المسجد فلا شيء له
📖तर्जुमा हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मर्वी है के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम ने फरमाया जो मस्जिद में नमाज़ ए जनाज़ा पढ़े उसके लिए कुछ सवाब नहीं
📖(अबु'दाऊद, किताबुल जनाइज़, बाब, अस्सलातु अलल'जनाज़िहि फ़िल मस्जिदि, सफ़्हा 454)
हां सख्त बारिश आंधी तूफान वगैरह किसी वाक़ई मजबूरी के वक्त मस्जिद में भी पढ़ना जायज़ है, जब के ईदगाह, मदरसा, मुसाफिर खाना, वगैरा कोई जगह ना हो। ''हजरत अल्लामा सैयद अहमद तेहतावी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फरमाते हैं
जो मस्जिद सिर्फ नमाज़-ए-जनाज़ा ही पढ़ने के लिए बनाई गई हो वहां यह नमाज़ मकरूह नहीं यानी जायज़ है, यूं ही मदरसे और ईदगाह में नमाज़ ए जनाज़ा पढ़ना जायज़ है
📖(तेहतावी अला मुराकिल'फलाही, मतबूआ क़ुसतुस-तुनिया, सफ़्हा 326)
और मौलाना मुफ्ती जलालुद्दीन साहब अमजदी फरमाते हैं "नमाज़े जनाज़ा ईदगाह के इहाते (ग्राउंड) और मदरसे में भी पढ़ी जा सकती है लिहाज़ा जो लोग ईदगाह में नमाज़ ए जनाज़ा पढ़ते हुए झिझक महसूस करते हैं वह बिला ख़ौफ़ बेझिझक वहां नमाज़ ए जनाज़ा पढ़ा करें
(ग़लत फेहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 52/53)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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