नसबंदी कराने वाले की इमामत का हुक्म
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नसबंदी करना इस्लाम मै हराम है लेकिन कुछ लोग ख़्याल करते हैं कि जिसने नसबंदी करा ली अब वह ज़िन्दगी भर नमाज़ नहीं पढ़ा सकता। हालांकि ऐसा नहीं है बल्कि इस्लाम में जिस तरह और गुनाहों की तौबा है इसी तरह इस गुनाह की भी तौबा है, यानी जिस की नसबंदी हो चुकी है अगर वह सिद्क़ दिल से (यानी सच्चे दिल से) ऐलानिया (खुले आम) तौबा करे और हरामकारियों से बाअज़ रहे तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ी जा सकती है
📚 (फ़तावा फैज़ुर्रसूल, जिल्द 01 सफ़्हा 277)
📚 (ग़लत फेहमियां और उनकी इस्लाह, सफ़्हा न. 39,40)
✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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