नमाज़ न पढ़ कर वज़ीफ़े पढ़ना कैसा है ?



 नमाज़ न पढ़ कर वज़ीफ़े पढ़ना कैसा है ?

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काफ़ी लोग देखे गए कि वह नमाज़ों का ख़्याल नहीं रखते और पढ़ते भी हैं तो वक्त निकालकर जल्दी-जल्दी या बगैर जमात के और वज़ीफ़ा और तस्बीहों मै लगे रहते हैं। उनके वज़ीफ़े उनके मुंह पर मार दिए जाएंगे, क्योंकि जिसके फ़र्ज़ पूरे ना हो उसका कोई नफिल क़ुबूल नहीं। इस्लाम में सबसे बड़ा वज़ीफ़ा और अमल नमाज़ ए बा-जमात की अदायगी है। हदीस शरीफ:- मै है कि हज़रत ए उमर ने एक दिन फज्र की जमात मै हज़रत ए सुलेमान बिन अबी हसमा को नहीं पाया दिन मैं बाज़ार को जाते वक्त उनके घर के पास से गुज़रे तो उनकी मां से पूछा कि आज सुलेमान जमात मै क्यों नहीं थे ? उनकी वालिदा हज़रत ए शिफा ने बताया कि रात भर जागकर इबादत करते रहे फज्र की जमात के वक्त नींद आ गई और जमात मै शरीक होने से रह गए। अमीरुल मोमिनीन हज़रत ए उमर फारुक़ ए आज़म रदियल्लाहु ताला अन्हु ने फ़रमाया कि मेरे नज़दीक सारी रात जागकर इबादत करने से फज्र की जमात मै शरीक होना बेहतर है

📕 (मिश्कात बाबुल जमाअत सफ़्हा 97)

आला हज़रत फरमाते हैं जब तक फ़र्ज़ ज़िम्मे पर बाक़ी रहता है कोई नफिल कुबूल नहीं किया जाता


📕 (अल-मलफूज़, हिस्सा अव्वल, सफ़्हा 77)


(📚गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह नः 38)


✍🏻 अज़ क़लम 🌹 खाकसार ना चीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)

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