✿➺ सवाल
सरकार ﷺ के ज़माने में औरत मर्द साथ नमाज़ पढ़ते थे? अब क्यू नही?
❀➺ जवाब
सरकार ﷺ के वक़्त मे औरतें मस्जिद मे नमाज़ के लिए जाया करती थीं, मगर बाद मे फित्ने के खौफ से दौरे फ़ारूकी मे मना कर दिया, और हज़रत आएशा ने फरमाया (हुजूर ﷺ हमारे ज़माने की औरतों को मुलाहज़ा फरमाते तो उन्हे मस्जिद जाने से मना करते, जैसे बनी इसराइल ने अपनी औरतो को मना कर दिया था)
📗फताहुल कदीर मे है
(फ़साद के गलबे की वजह से, तमाम वक्तो की नमाज़ों मे, उमूमन बूढ़ी और जवान औरतों का निकलना मुतखरीन उलमा ने मना फरमाया है)
📗फतावा रजविया, जिल्द:14, सफा:551 पर है
जब और फ़साद फैला तो उलमा ने जबान वा ग़ैर जवान (बूढी) किसी के लिए (हाज़री ए मस्जिद की) इजाजत ना रखी औरत को जमाअत से नमाज़ पढ़ना मकरूह है, चाहे दिन की नमाज हो या रात की, फ़र्ज हो या तरावीह।
इसी तरह बहारे शरीअत, जिल्द:1, सफा:584 पर है
औरतो को किसी नमाज़ मे जमाअत की हाज़री जाइज़ नहीं, दिन की नमाज़ हो या रात की, जमुआ हो या ईदैन, ख्वा जवान हो या बूढ़ी
📗बहारे शरीअत, जिल्द:1, सफा:466 पर है
(औरत की जमाअत) खुद मकरूह है
📗फतावा फैज़रुरसूल, जिल्द:1, सफा:425 पर है
औरतो को ईदगाह की हाज़री जाइज़ नही" अब इस बात से आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हो की जब सहाबा के वक्त में फसाद का खौफ़ हुआ और उन्होने मस्जिद की हाज़री औरत के लिए मना कर दी, तो आज का वक़्त कैसा है, ये मुझे आपको बताने की जरूरत नहीं, आप खुद गौर करे की अगर मस्जिद मे औरते लड़किया नमाज़ को जाएगी तो हाल क्या होगा, मर्दो का जमघट मस्जिद के बाहर होगा, इमाम से जवान लड़के ज्यादा मेल जोल रखने लगेंगे, दिन भर मस्जिद में रहेंगे, बाकी आप बुद समझदार हो, ये दौर दौरे रसूल से बेहतर नही, बुरे से बुरा तर है
और हदीस मे है
गुज़रा हुआ कल, आज से बेहतर था, और आज का दिन आने वाले कल से बेहतर है, ता - कयामत इसी तरह होगा "अब इस हदीस से और साफ हो गया की, पहले का गुज़रा हुआ दिन अच्छा और आने वाला और खराब होगा लिहाज़ा सहाबा ने जो किया अच्छा किया और उसे उलमा ने बाकी रखा तो और अच्छा किया
हदीस मे है की हुजूर ﷺ ने फरमाया मेरे बाद बहुत सी चीज़े नई ईजाद होंगी उनमे से मुझे वो सबसे ज्यादा पसंद है जो उमर ईजाद करेंगे
📚ह़वाला पर्दादारी, सफा नं.62
✒️मौलाना अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार
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