✿➺ सुवाल
नाहिदा (मुस्लिम लेडी) ने ज़ैद (मुस्लिम जेंट्स) को रक्षा बंधन की मुबारक बाद दी और अमर (काफिरा लेडी) ने ज़ैद को रक्षा बंधन की मुबारक बाद दी अब ज़ैद और नाहिदा पर क्या शरई हुक्म लगेगा ? राखी बांधना या बंधवाना कैसा है ?
❀➺ जवाब
काफ़िर के "कॉमी शिआर 'इख्तियार करना हराम होता है काफ़िर के" मज़हबी शिआर" को इख्तियार करना कुफ्र होता है, रक्षा बंधन काफिरो का कॉमी त्योहार है, मज़हबी त्योहार नही, किसी भी काफ़िर का कॉमी शिआर इख्तियार करना हराम गुनाह है जैसे होली खेलना, जो चीज़ उनके मज़हब मे इबादत मानी जाती है वो कुफ्र है, जिस मुसलमान औरत ने मर्द को राखी बाँधी और जिस मर्द ने मुसलमान और गैर मुसलमान औरत से राखी बंधवाई, ये दोनो यानी नाहिदा, जैद फासिक, फाजिर, सख्त गुनहगार, अज़ाब के हक़दार है, लेकिन काफ़िर नही क्यूंकी राखी बांधना (गैर मुस्लिम) का कॉमी त्योहार है, मज़हबी नही
हज़रत शारेह बुखारी, फकिह ए आज़म ए हिंद, हज़रत अल्लामा मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद शरीफ उल हक़ अमज़दी साहिब फतावा शारेह बुखारी, जिल्द:2, सफा:568, पर लिखते है
जिन मुसलमान औरतो ने हिन्दुओं को ये डोरा बांधा, जिन मुसलमान मर्दो ने हिंदू औरतों से ये डोरा बँधवाया सब फासिक, फाजिर, गुनहगार, अज़ाब के हकदार है, लेकिन काफ़िर नही, इसलिए की राखी बंधन पूजा नही उनका कॉमी त्योहार है, काफ़िर के मज़हब की मुबारकबाद देना अशद हराम, और मुश्रीकाना फैल पर राज़ी और खुश हुआ या ताज़ीमन शामिल हो कर मुबारक बाद दी तो खुद भी काफ़िर ऐसे शख़्स पर तज्दीदे ईमान और अगर बीवी वाला था तो निकाह लाज़िम
📚ह़वाला पर्दादारी, सफा नं.33
✒️मौलाना अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार
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