ग्रुप रज़ा कमेटी सेमरबारी दुदही कुशीनगर
सवाल
ज़ैद है जो किसी आलिम की बात नहीं मानता और यह भी कहता है कि मैं उन की बात क्यों मानूं मैं जो पढूंगा वही मानूंगा तो क्या ज़ैद काफिर हो गया ज़ैद के कहने का मतलब यह है कि शरई बात को नहीं मानूंगा हवाले के साथ जवाब इनायत फरमाएं
साईल गुलाम नबी बनारस
जवाब
आपने सवाल में मुकम्मल तौर से वाज़ेह नहीं किया है कि ज़ैद आलिम ए दीन की कौन सी बात नहीं मानता है ?
अगर आलिम ए दीन शरई अहकाम बताता है और ज़ैद कहता है मैं क्यों मानूं तो यह ज़ैद की हट धर्मी है ज़ैद ने अगर शरई अहकाम के मुतअलिक कहा कि मैं क्यों मानूं तो उस पर तौबा लाज़िम है और ज़ैद का यह कहना कि मैं जो पढ़ुंगा वही मानूंगा यह बात ज़ैद की जहालत पर मबनी है क्योंकि बहारे शरीअत व दीगर कुतुब ए फिक़्ह मै कुछ ऐसे मसाईल है जिन्हें आम इंसान के लिए समझना बहुत मुश्किल है
लिहाज़ा ऐसी सूरत में ज़ैद काफीर नहीं होगा मगर खुद की अक़ल से शरई अहकाम अखज़ करने की कोशिश करेगा तो गुमराह होने का इमकान ज़रूर है
और अगर ज़ैद यह सोचता है की आलिम ए दीन से मसअला पूछुंगा तो शर्मिंदगी होगी तो भी ज़ैद गलती पर है
अल्लाह पाक फरमाता है ⤵️
📚 (तर्जुमा कंज़ुल इमान मअ खज़ाइनुल इरफान सफा 518)
तो ए लोगों इल्म वालों से पूछो अगर तुम्हें इल्म ना हो
📚 (सूर ए अंबिया आयत 7 पारा 17)
इस आयत से तक़लीद का वजूब साबित होता है यहां इल्म वालों पूछने का हुकुम दिया गया है
✍🏼 अज़ कलम . हज़रत मौलाना मोहम्मद मासूम रज़ा नूरी साहब क़िबला मंगलोर कर्नाटक
✍🏻 हिंदी ट्रांसलेट मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
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