हलाल जानवरो के पेशाब की छींटो का मसला
आला हजरत रादिअल्लाहु ताला अनहु फरमाते है
बैलों का गोबर पेशाब नजासत खफीफा है। जब तक चहारूम (चौथाई) कपड़ा न भर जाए या कुल मिला कर इतनी पड़ी हो कि जमा करने से चहारूम कपड़े की मिकदार हो जाए, कपड़े नजासत का हुक्म न देंगे और उससे नमाज जाइज होगी और बिलफर्ज उससे से ज्यादा भी धब्बे हो और धोने से सच्ची मजबूरी यानी हरजे शदीद हो तो नमाज जाइज है।
📒 फतावा रजविया जिल्द 2 सफह 169
हदीश शरीफ मे है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलह वसल्लम ने फरमाया
ما اکل لحمہ فلا باس ببولہ
जिसका गोश्त खाया जाता है। उसके पेशाब मे जायादा हरज नही। यानी उसका पेशाब ज्यादा सख़्त नापाक नही
📘 मिश्कात बाब तत्हीरिन्नजासत सफह नः 53
खुलासा यह कि हलाल जानवरो मसलन गाय भैंस बैल घोड़ा ऊँट बकरी का पेशाब नजासते खफीफा (हल्की नापाकी) है। कपड़े या बदन के किसी उज्व(Part) का जब तक चौथाई हिस्सा उसमें मुलव्विस न हो नमाज पढ़ी जा सकती है। और मामूली छींटे जो आम तौर पर किसानो के कपड़ो और बदन पर आ जाती है। जिन से बचना निहायत मुश्किल है उनके साथ तो बिला कराहत नमाज जाइज है और नमाज छोड़ने का हुक्म तो किसी सूरत मे नही चाहे ब-हालते मजबूरी गन्दगी कैसी ही और कितनी ही हो और धोने और बदलने की कोई सूरत न हो तो यूँही नमाज पढ़ी जाएगी नापाकी बहुत ज्यादा हो या कपड़े न हो तो नंगे बदन नमाज पढ़ी जाएगी यह जो जाहिल लोग मामूली मामूली बातो पर कह देते है कि ऐसी नमाज पढ़ने से तो न पढ़ना अच्छा। यह उनकी जहालत व गुमराही है। सही बात यह है। कि मजबूरी के वक़्त नमाज छोड़ने से हर हाल मे और हर तरफ नमाज पढ़ना अच्छा है।
(गलत फ़हमियाँ और उनकी इस्लाह सफह नः 22)
✍🏻हिन्दी ट्रांसलेट 👉🏻 खाकसार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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