✿➺ सुवाल
क्या नमाज़ मे क़िराअत के अल्फ़ाज़ सही मखरज़ से अदा ना हुये तो क्या नमाज़ ना हुई ? वजाहत फरमाए
❀➺ जवाब
क़िराअत ग़लत होने की कई सूरते है, कुछ मे नमाज़ टूट जाएगी, जबकि मायने फ़ासिद हो और बाज़ सुरतों मे नमाज़ हो जाती है, जैसा खता फिल एराब (एराब की ग़लती) इससे नमाज़ हो जाती है इसी पर फतवा है. वरना किस सूरत मे क्या ग़लती हुई वो ब्यान की जाए
📔 फतावा रज़विया, जिल्द:6, सफा: 248 पर है
☝🏻एराब में गलती (यानी: हरकत, सुकून, तशदीद, तखफीफ, कसरा मद) की ग़लती में उलमा ए मुताब्रिरीन का फतवा तो ये है की, अलल-इत्तिलाक इससे नमाज़ नही जाती
📔 दूरे मुख्तार में है
☝🏻 किराअत करने वाले की ग़लती अगर एराब मे हो तो नमाज़ फासिद नही होगी अगरचे उसके मना बदल जाएं, इस पर फतवा है
📔 फतावा अलामगीरी मे है
☝🏻वक्फ वा वस्ल की गलती कोई चीज़ नहीं, यहाँ तक की अगर वक्फ़ लाज़िम पर ना ठहरा, बुरा किया मगर नमाज़ ना गई
📔 बहारे शरीअत जिल्द:1, सफा: 554 पर है
☝🏻एराबी ग़लतियाँ अगर ऐसी हैं जिससे माने ना बिगड़ते तो मुफ्सिद नहीं
👉 अगर ऐसी ख़ता की, की जिससे माना बदल जाए, तो ज़रूर नमाज़ फ़ासिद हो जाएगी, और बाज़ सुरतों मे जबकि माना जानता है, और फिर भी बदल दिया तो काफ़िर भी होगा
📔 बहारे शरीअत जिल्द:1, सफा: 554 पर है
☝🏻अगर ऐसी ग़लती हुई जिससे माने विगड़ गये तो नमाज़ फ़ासिद होगी और लफ़ज़ो को बदल देने का ये मतलब होता है की, अगर कोई लफ्ज़ किसी और लफ्ज़ से बदल दिया, और माना फ़ासिद ना हो तो नमाज़ हो जाएगी, वरना नहीं, और करिबुस-सौत अल्फ़ाज़ (एक जैसी आवाज़ वाले) हुरूफो का भी सही तोर पर इम्तियाज़ रखे वरना माना फ़ासिद होने की सूरत मे नमाज़ जाती रहेगी
(ت - ط ,س - ث - ص , ه - ح)
वग़ैरह हरूफ़ मे इम्तियाज़ चाहिए
📔 दुरै मुख़्तार जिल्द: 1, सफा: 431 पर है
☝🏻जो शख़्स हुरूफ ए तहजी मे से किसी हुरूफ के सही तलफ़फुज़ पर कादिर ना हो, मसलन ...الرحيم الرحمن की जगह ھيم الرھمن ...ٰ الشيط की जगह العالمين .. الشيتان.. की जगह . اآللمين - और - اياک نعبد .. की जगह نستعين ...نابد اياک की जगह الصراط.. نستئين. की जगह انعمت ..السرات की जगह انأمت पढ़ता है तो इन तमाम सुरतो मे अगर कोई हमेशा दुरुस्त अदायगी की कोशिश के बावजूद ऐसा करता है तो नमाज़ दुरुस्त होगी, वरना नमाज़ दुरुस्त ना होगी
और सीखने पर जान लड़ा कर कोशिश ना की इसकी खुद की नमाज़ नहीं होगी
📔 फतावा रज़वीय्या जिल्द: 6, सफा: 262 पर है
☝🏻अहम् चीज़ो मे से तजवीद ए कुरआन सीखना भी है कुर्रा किराअत का सिलसिला भी हुजूर तक पहुचता है, और उलमा ने तजबीद के बगैर कुरआन पढ़ने को ग़लत पढ़ना करार दिया
📔 फतावा बाज़्ज़रिया मैं है
(ग़लत पढ़ना बिला-इज़मा हराम है)
📚ह़वाला पर्दादारी, सफा नं.26
✒️मौलाना अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ बिहार
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