औरतों को चेहरा खोलकर घूमना कैसा

 औरतों को चेहरा खोलकर घूमना कैसा



✿➺ सवाल 


आजकल औरतें लड़कियां बाज़ार में, बुर्का तो पहनती हैं मगर चेहरा खुला रखती हैं क्या ये सही है ग़ैर मर्द के सामने चेहरा खोल सकते है, और अगर किसी से कहो की चेहरा ना खोलो तो कहती हैं शरीअत ने चेहरा खोलने की इजाज़त दी है, आप बताएं क्या सही है ?


 ❀➺ जवाब


पर्दादार चेहरे को चमकाता हुआ, झूठे पर्दो पर कहर बरसाता हुआ, (रादुल हिजाब बिल बातिल नकाब) (सभी माली फैली इबादत अजमत वाले शोहरत वाले इज्जत वाले ज़मीन और आसमान के नूर (अल्लाह) के लिए, जो चमकाएगा, क़यामत में चेहरा अपने करम से इस तहरीर के लिखने वाले का, और पढ़ने वालों और खास कर अमल करने वालों का, उनके साथ जिनके साथ वादा किया गया की कुछ चेहरे हश्र के मैदान में चमकते होंगे, और दुरूद ओ सलाम हो बेशुमार बेशुमार उस नूरानी चेहरे वाले के लिए जिनकी औलाद दर औलाद को इमामे अहले सुन्नत ने नूर फ़रमाया, और तमाम सहबा और अहले बैत पर जिन्होंने गवाही दी की हुजूर ﷺ का चेहरा 14 वी के चाँद से ज़्यादा चमकदार था) जी हाँ पुर फितन दौर को देखते हुए उलमा ने चेहरे को छिपाने को वाजिब लिखा है, मैं कहता हूँ(अल्लाह ही की तोफिक से) की सारा कमाल और वबाल चेहरे का ही है, चेहरा ही भाता है, और चेहरा ही डुबाता है, और कल दोज़ख में भी कुछ औरते अपने चेहरे नोचती होगी, मगर कुछ के चेहरे तो नूरानी होंगे तो फिर मेरी इस बात में कुछ मुबालग़ा नहीं, अगर में कहूँ, की “हुस्न का दारो-मदार चेहरे पर है, जो गैर मर्द से हुस्न को छुपाना चाहै उसे चाहिए की चेहरे को छिपा ले

📕 फतावा रज़विया जि.14, स. 552,


उलामा ने चेहरे छिपाना सदी अव्वल में वाजिब ना था, वाजिब कर दिया”

हिदाया में हैं तर्जुमा: "चेहरे पर पर्दा लटकाना औरतों पर वाजिब है

शरह लिबास में है तर्जुमा: “यह मसअला इस बात पर दलालत करता है की औरतो को बिला ज़रूरत अजनबी लोगों पर अपना चेहरा खोलना मना है

दुरै मुख़्तार में है तर्जुमा: ```"फ़ित्ने के खोफ से औरत को मर्दो में चेहरा खोलने से रोका जाये, "इस किस्म के सेकड़ो मसाइल हैं जिसे उलामा ने वक़्त की नजाकत के तहत बदल दिया, और जो कहै की ये``` हुजूर ﷺ ```के वक़्त में नहीं था या शरीअत में पहले नहीं था अब क्यूँ तो वो जाहिल है क्यूंकि इस तरह के हुक्म शरीअत के खिलाफ नहीं बल्कि ऐन शरीअत ही के मुताबिक और हुज़ूरﷺ ```के फरमान ही के मुताबिक हैं, और अगर कोई अहमक औरत जो अहकामे शरीअत से बेखबर हो और यूँ कहै की जब दौरे रसूल में चेहरा छिपाना वाजिब नहीं तो अब क्यूँ तो इसका जवाब ये है की दौरे रसूल में तो औरते मस्जिद में भी नमाज़ पढ़ती थी

बल्कि हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया जब तुम में से किसी की औरत मस्जिद जाने की इजाज़त चाहै तो उसे मना ना करो (इस हदीस को बुखारी और मुस्लिम ने रिवायत किया

और आगे हदीस में अल्लाह की कनीजों को अल्लाह की मस्जिदों से ना रोको इस हदीस को मुस्लिम और अबु दावूद ने सुनन में नक़ल किया

♡☞ पहली सदी में औरतें मस्जिद जाती मगर बाद में वक़्त की नजाकत के तहत दौरे फ़ारूके आज़म रज़ियल्लाहु अ़न्हू में इसे भी बंद करना पढ़ा, उस वक़्त क्या हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अ़न्हू और हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अ़न्हा को ये नहीं मालूम था की वो ऐसे काम पर पाबन्दी लगा रहै हैं जिस पर हबीब खुदा ﷺ ने पाबन्दी ना लगाईं, बल्कि``` हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अ़न्हा ने फ़रमाया ```“हुजूर ﷺ हमारे ज़माने की औरतों को देखते तो उन्हें मस्जिद जाने से मना करते जैसे बनी इसराइल ने अपनी औरतों को मना कर दिया"```

♡☞ “इस फरमान से ये साबित है हुज़ूरﷺ भी होते तो उस दौर को देखते हुए ज़रूर यही हुक्म देते जो हमने दिया

 ```👆🏻इस हदीस से चमकते चेहरे की तरह साफ़ हो गया की उलामा का कोई फरमान खिलाफे रसूल नहीं होता बल्कि एन हुक्मे रसूल पर होता है, उसके बाद आज तक उलामा ने औरतो को मस्जिद की हाजरी से बाज़ रखा क्यूंकि अब तो दौर उससे भी ज़्यादा आग बरसाने वाला है,``` 

♡☞ फ़तहुल क़दीर में है:यानि:`“फसाद के ग़लबे की वजह से तम वक्तों की नमाज़ों में जवान बूढी औरतों का निकलना मुताखिरीन ने माना फ़रमाया है

♡☞ फ़िक्ह का एक क़ायदा भी है की: ```“ज़माने की तबदीली के सबब एहकाम की तबदीली का इंकार नहीं किया जा सकता"```


♡☞ खुलासा ए कलाम और मेरी राय भी यही है की, हर मर्द पर लाज़िम है की वो ग़ैर के सामने पर्दे के साथ साथ अपनी औरत को चेहरा छिपाने का भी हुक्म दे, और जो ये कुछ नक़ाब होते है जिसमे आँखे खुली होती है,``` मेरे नज़दीक इसका पहनना भी नापसंदीदा है, (और ये मेरी जाती राय है) (बल्कि आँखो सहित पूरा चेहरा ढका होना चाहिए ```इसकी एक खास वजह है की चेहरा छिपाने का हुक्म इसीलिए है की``` ना रंग दिखे ना उमर ```मगर नक़ाब मे आखे खुले रहने से औरत की उमर और रंग का अंदाज़ा हो जाता है और ये भी की जवान है या बूढ़ी "बस ये दिल मे फ़साद पैदा करने के लिए काफ़ी है तो चाहिए मुसलमान इज़्ज़त वाले मर्दो और औरतो को की बाज़ारो और गैर मर्द के सामने मुकम्मल पर्दा करे यानी चेहरा भी छिपाए और आँखे भी ढक कर रखे, और घर मे रहते हुए चूंघट करा जा सकता है इसमे दुशवारी नहीं है, अगर कोई करना चाहै

♡☞और मुझे हैरत है दौर रसूल मे तो सहाबिया रात रात भर नमाज़ पढ़ती थी, रोज़ा रखती थी, इस काम को लेकर वो दौर याद क्यूँ नही आता की हम भी रातो को आराम ना करके नमज़े पढ़े?, दौर याद आया तो चेहरे के खोलने पर?```

♡☞ इस कलाम को पढ़ने के बाद कहेंगे कुछ बेबाक़ लोग की``` पर्दा आँखो का है ```फिर मैं कहूँगा की अगर इस दौर मे लोगो मे हया ज़्यादा आ गई क्या उस पहली सदी मे हयादार नही थे और मुमकिन है फिर कोई बेबक़ बोल बेठे की दिल साफ होना चाहिए

♡☞तो मेरा जवाब यही होगा की जब हज़रत आयशा रदिअल्लाह अ़न्हा हुज़ूरﷺ के मज़ार पर हाज़िर होती तो (पर्दे का खास ख़्याल ना रखती) ```फरमाती ये मेरे शोहर है, फिर जब हज़रत अबु बक़र रज़ियल्लाहु अ़न्हू हुज़ूरﷺ के क़दमो मे दफ़न हुए तो भी यही हाल था क्यूंकी अब एक शोहर एक वालिद थे मगर जब हज़रत उम्र रज़ियल्लाहु अ़न्हू का मज़ार भी वही बना तो खूब ढक कर आने लगीं, क्यूंकी हज़रत उम्र रज़ियल्लाहु अ़न्हू ग़ैर मर्द थे, फिर वही बात

♡☞क्या हज़रत उम्र रज़ियल्लाहु अ़न्हू से ज़ियादा इज़्ज़त वाले इस ज़माने मे आ गये या हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अ़न्हा से ज़्यादा हया वाली आ गई, जो तुम्हारे सिर्फ़ दिल का पर्दा काफ़ी है, कही इसका मतलब ये तो नही है, की आप साबित करना चाहते हो की आप उन हज़रात से ज़्यादा नेक हो ???

अल्लाह तअला से दुआ है की वो इस कलाम मे छिपे असली मक़सद मे कामयाबी दे, और मुसलमान औरतो को इसे समझने और दिल से कुबूल करने और अमल करने का जज़्बा दे, ताकि कल चेहरा खुदा के सामने दिखाया जा सके, और घर मे देवर, जेठ कज़िन से भी घूगट करने की तोफिक़ बख़्शे, और अगर कोई ऐसा करे तो बेशक ज़्यादा सवाब की हक़दार होगी

तुम्हारा रब फरमाता है क़ुरआन मे सुरहः 99 आयत: 7, 

 तो जो एक ज़र्रा भर भलाई करे उसे देखेगा

और फरमाता है सुरहः 94 आयात: 5-6 मे

तो बेशक दुशवारी के साथ आसानी है , बेशक दुशवारी के साथ आसानी है।


ह़वाला 📗 पर्दादारी, सफा नं.9,10,11-12


 ✒️मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी बड़ा रहुवा बायसी पूर्णिया बिहार

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