सवाल👇
क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम व मुफ्तियाने शरअ मतीन इस मसला में की हवाई जहाज़ व ट्रेन चलने के दौरान नमाज़ पढ़ने का शरई हुक्म क्या और उस पर सरकार ए ताजुश्शरिया का मोक़िफ क्या है जवाब इनायत फरमा कर इंदल्लाह माजूर हो❓
साईल ➡️ मोहम्मद शब्बीर अहमद रिज़वी (मालेगाव एमपी)
जवाब👇
इस तरह के एक सवाल पर हुजूर फिक़्ह ए मिल्लत अल्लामा मुफ्ती जलालुद्दीन अहमद अमजदी अलैहिर्रहमतुर्रिज़वान तहरीर फरमाते हैं चलती हुई ट्रेन में नफिल नमाज़ पढ़ना जायज़ है मगर फर्ज़ वाजिब और सुन्नत फजर पढ़ना जायज़ नहीं इसलिए की नमाज़ के लिए शुरू से आखिर तक इतिहाद मकान और जहत क़िबला शर्त है और चलती हुई ट्रेन में शुरू नमाज़ से आखिर तक क़िबला रुख रहना अगर्चे बाज़ सूरतों में मुमकिन है लेकिन एखतिताम नमाज़ तक इतिहाद मकान यानी एक जगह रहना किसी तरह मुमकिन नहीं इसलिए चलती हुई ट्रेन में नमाज़ पढ़ना सही नहीं, हां अगर नमाज़ की औकात में नमाज़ पढ़ने की मिक़दार ट्रेन का ठहरना मुमकिन ना हो तो चलती हुई ट्रेन में नमाज़ पढ़ ले फिर मौक़ा मिलने पर इआदा (दोबारा पढ़े) करे*
रद्दुल मुहतार में है ⤵️
(الحاصل ان کلا من اتحاد المکان واستقبال القبلۃ شرط فی صلاۃ غیر النافلۃ عندالامکان لا یسقط الابعذر )
यानी 👉🏻 हासिल ए कलाम यह है की नफिल नमाज़ के अलावा सभी समाज़ों के लिए इतिहाद ए मकान और इस्तक़बाल ए क़िबला यानी एक जगह ठहरना और क़िबला रुख होना आखिर नमाज़ तक बक़दरे इमकान शर्त है जो बगैर उज़्र ए शरई साक़ित ना होगा और ज़ाहिर है कि ट्रेन नमाज़ के औक़ात मैं कहीं ना कहीं इतनी देर जरूर ठहरती है कि दो या चार रकात नमाज़ फर्ज़आसानी से पढ़ सकता है की ट्रेन ठहरने से पहले से फारिग होकर तैयार रहें और ट्रेन ठहररते ही उतर कर या ट्रेन में ही क़िबला रूख खड़े होकर पढ़ ले अगर इतनी क़ुदरत के बावजूद काहली और सुसती से चलती ट्रेन में नमाज़ पढ़ेगा तो वह शरअन माज़ूर ना होगा और नमाज़ ना होगी
(हवाला फतावा ए फैजूर रसूल जिल्द १ सफा २३६/२३७)
नोट 👉🏻 यही मोक़िफ हुज़ूर ताजुश्शरिया अलैहिर्रहमा का भी था
🌷والله و رسولہ اعلم باالصواب🌷
✍🏻 अज़ क़लम खाक़सार नाचीज़ मोहम्मद शफीक़ रज़ा रिज़वी खतीब व इमाम (सुन्नी मस्जिद हज़रत मनसूर शाह रहमतुल्लाह अलैह बस स्टॉप किशनपुर अल हिंद)
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